CBDT की नई डिजिटल जांच नीति: आयकर विभाग केवल वित्तीय डेटा देखेगा

CBDT की नई डिजिटल जांच नीति: आयकर विभाग केवल वित्तीय डेटा देखेगा

आयकर विभाग की डिजिटल जांच शक्ति के बारे में चल रहे बहस के बीच, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के चेयरमैन CBDT रवि अग्रवाल ने स्पष्ट बयान दिया। उन्होंने कहा कि किसी करदाता के फोन, लैपटॉप या ई‑मेल जैसे डिजिटल उपकरणों को जब जाँच के दौरान बरती जाती है, तो केवल वही वित्तीय डेटा देखा जाएगा जो मामले से संबंधित हो। निजी संदेश, चैट या व्यक्तिगत फोटो‑वीडियो को हटाकर या ब्लर करके रख दिया जाएगा, जिससे करदाता की व्यक्तिगत गोपनीयता बनी रहे।

डिजिटल जांच के नियमों का विस्तार

नवीन आयकर बिल 2025, जो फरवरी में बजट सत्र के दौरान लोकसभा में पेश हुआ, में एक विशेष धारा शामिल है जो कर अधिकारियों को डिजिटल उपकरणों, सोशल मीडिया अकाउंट्स और ई‑मेल तक पहुँच का अधिकार देती है। इस धारा को कई विशेषज्ञों ने ‘गोपनीयता संकट’ कहा, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि किस हद तक डेटा एकत्र किया जाएगा। अग्रवाल ने कहा कि यह अधिकार 1961 के आयकर अधिनियम से ही आया है, लेकिन अब इसे अधिक स्पष्ट प्रक्रियात्मक नियमों के साथ लागू किया जाएगा।

एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी ने बताया कि ये अधिकार तब ही प्रयोग में लाए जाते हैं जब करदाता पासवर्ड नहीं देता या डिजिटल स्टोरेज, क्लाउड या व्हॉट्सएप‑टेलीग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच की अनुमति नहीं देता। तब अधिकारी खोज‑रोक (search‑seizure) ऑपरेशन के हिस्से के रूप में डेटा इकट्ठा करते हैं, लेकिन वे इसे ‘साक्ष्य’ के रूप में सुरक्षित रखते हैं। वास्तविक जांच में केवल वही जानकारी निकाली जाती है जो कर‑भुगतान, बैंक लेन‑देनों या टैक्स रिटर्न से जुड़ी हो।

गोपनीयता को लेकर उठाए गए सवालों के जवाब में, CBDT ने एक विस्तृत ‘डिजिटल साक्ष्य विश्लेषण मैनुअल’ तैयार करने की घोषणा की है। इस मैनुअल में यह बताया जाएगा कि किस तरह डेटा को एन्क्रिप्ट किया जाएगा, कौन‑सी तकनीकी टीम इसे देखेगी, और किस प्रक्रिया के बाद ही जानकारी सार्वजनिक या विभागीय उपयोग के लिए उपलब्ध होगी। इस प्रक्रिया के दौरान कोई भी अनधिकृत व्यक्ति डेटा तक पहुँच नहीं पाएगा, और सभी कार्य ‘सैनिटाइज़्ड एंवायरनमेंट’ में किए जाएंगे।

AI‑आधारित अनुपालन निगरानी और नया प्रोत्साहन मॉडल

AI‑आधारित अनुपालन निगरानी और नया प्रोत्साहन मॉडल

डिजिटल साक्ष्य नियमों को सुदृढ़ करने के साथ‑साथ, आयकर विभाग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके करदाता‑अनुपालन की निगरानी भी तेज़ कर दी है। AI सिस्टम टैक्सपेयर की ऑनलाइन गतिविधियों, वित्तीय लेन‑देनों और रिटर्न‑फ़ाइलिंग पैटर्न को ट्रैक करता है। वार्षिक जानकारी पत्र (AIS) के औसत 3.5 बार विज़िट किए जाने का डेटा दर्शाता है कि लगभग 24 करोड़ बार करदाता पोर्टल का उपयोग करते हैं, लेकिन केवल 9 करोड़ रिटर्न फाइल हुए हैं, जबकि 40 करोड़ AIS दस्तावेज़ तैयार हो चुके हैं।

इन आँकड़ों को आधार बनाकर, विभाग ने उन उच्च‑मूल्य लेन‑देनों की पहचान की है जहाँ रिटर्न का अभाव है। साथ ही, बार‑बार गलत दावा किए जाने वाले छूट और डिडक्शन को भी AI सिस्टम ने पकड़ लिया। इस जानकारी के आधार पर 14 जुलाई 2025 को एक राष्ट्रीय सत्यापन दौड़ शुरू की गई, जिसमें 150 स्थानों पर करदाता‑मिश्रित दस्तावेज़ों की जाँच हुई। इस अभियान से 963 करोड़ रुपये के अनुचित छूट कटे और 409.50 करोड़ रुपये अतिरिक्त कर वसूले गए, मुख्यतः एसएमएस और ई‑मेल के माध्यम से करदाता को सूचित करने से।

आग्रह का प्रचलन बढ़ाने के उद्देश्य से, विभाग ने करदाता से सही ई‑मेल और मोबाइल नंबर देने की भी अपील की है। यह जानकारी न केवल नॉटीफिकेशन हेतु उपयोग होती है, बल्कि जाँच में भी मददगार साबित होती है। चेयरमैन अग्रवाल ने कहा, “यह कदम दण्डात्मक नहीं, बल्कि जागरूकता बढ़ाने और सही फाइलिंग को प्रोत्साहित करने के लिए है। हम करदाता पर भरोसा करते हैं, परन्तु गलत छूट और डिडक्शन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

कायदे की बात करें तो, कर विभाग को कानूनन अनुमति के बिना डेटा साझा करना मनाही है। इस प्रकार के नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी कार्रवाई की जा सकती है, जिससे करदाता की गोपनीयता का शोषण नहीं होगा। विभाग ने यह भी कहा कि सभी डिजिटल साक्ष्य की जाँच केवल अधिकृत कर्मचारियों द्वारा ही की जाएगी, और अनधिकृत पहुंच से बचाने के लिए बहु‑स्तरीय सुरक्षा उपाय लागू किए गए हैं।

इन सब पहलुओं को मिलाकर देखा जाए तो आयकर विभाग का लक्ष्य दो धुरी पर है: एक ओर कर संग्रह में तकनीकी उन्नति लाना और दूसरी ओर करदाता के व्यक्तिगत अनुमतियों का सम्मान सुनिश्चित करना। नई आयकर विधेयक 2025 इन दो पहलुओं को संतुलित करने की कोशिश करती है, जहाँ डिजिटल युग की चुनौतियों को समझते हुए कानून को अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Aaditya Srivastava

आजकल डिजिटल दुनिया में गोपनीयता का सवाल बहुत ज़्यादा उठ रहा है। CBDT की इस नई दिशा से यह स्पष्ट हो गया है कि कर जांच में केवल वित्तीय डेटा ही देखे जाएंगे। इससे टैक्सपेयर का व्यक्तिगत चैट या फ़ोटो सुरक्षित रहेगा। फिर भी, उपकरणों की वास्तविक पहुँच को नियंत्रित करने के लिए सटीक प्रोटोकॉल की जरूरत है। यह कदम टेक्नोलॉजी और परम्परा का संतुलन दिखाता है।

Vaibhav Kashav

हूँ, अब डरने की बात नहीं, बस टैक्स रिटर्न भरना है और सब ठीक।

saurabh waghmare

डिजिटल जांच के नियमों को स्पष्ट करने का प्रयास सराहनीय है, क्योंकि अतीत में अस्पष्ट अधिकारों ने कई बार विवाद पैदा किए हैं।
पहला कदम यह है कि केवल वित्तीय लेन‑देनों से जुड़ी जानकारी ही साक्ष्य के तौर पर उपयोग होगी।
इससे टैक्सपेयर का व्यक्तिगत जीवन, जैसे निजी चैट या फोटो, कानूनी तौर पर सुरक्षित रहेंगे।
दूसरा, इस प्रक्रिया में “सैनिटाइज़्ड एंवायरनमेंट” की व्यवस्था डेटा को अनधिकृत रूप से एक्सेस होने से बचाएगी।
तृतीय, AI‑आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम उन अनियमितताओं को जल्दी पहचान सकता है, जिससे अनुपालन बढ़ेगा।
चौथा, कर विभाग को अब तकनीकी विशेषज्ञों की टीम को प्रशिक्षित करना होगा, जो एन्क्रिप्टेड डेटा को सही ढंग से हैंडल कर सके।
पाँचवा, यह नियम 1961 के आयकर अधिनियम के तहत वैध है, परंतु नई तकनीकों के साथ इसका अपडेट होना आवश्यक है।
छठा, टैक्सपेयर को अपने डिजिटल उपकरणों का बैकअप सुरक्षित रखना चाहिए, क्योंकि सिर्फ़ एक्सेस ही नहीं बल्कि डेटा की सही पुनर्प्राप्ति भी महत्वपूर्ण है।
सातवां, इस नीति से सार्वजनिक भरोसा बढ़ेगा, क्योंकि लोग जानेंगे कि उनकी निजी जानकारी का दुरुपयोग नहीं होगा।
आठवां, न्यायालयों को इस नए मैनुअल की वैधता पर समय‑समय पर समीक्षा करनी चाहिए।
नौवां, कर अधिकारियों को कानूनी रूप से सीमित अधिकारों का पालन करना होगा, अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
दसवां, इस नीति से छोटे व्यापारियों और फ्रीलांसरों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि उन्हें अनावश्यक दस्तावेज़ों की हिचकिचाहट नहीं रहेगी।
ग्यारहवां, डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में टाइम‑स्टैम्प और लॉग रखरखाव अनिवार्य है, जिससे बाद में सबूत की प्रामाणिकता साबित हो सके।
बारहवां, यदि किसी केस में डेटा को ब्लर या हटाया गया हो, तो उसे पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया भी स्पष्ट होनी चाहिए।
तेरहवां, यह पहल कर संग्रह में तकनीकी उन्नति और टैक्सपेयर की गोपनीयता के बीच संतुलन स्थापित करने में मददगार साबित होगी।
चौदहवां, इस दिशा में आगे चलकर ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों को भी अपनाया जा सकता है, जिससे डेटा की अपरिवर्तनीयता सुनिश्चित होगी।
पंद्रहवां, अंत में, सभी संबंधित पक्षों को इस नीति के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि कोई भी अनावश्यक डर न बना रहे।

Madhav Kumthekar

क्लॉज़ ९०‑बी के तहत करदाता को अपने मोबाइल नंबर व ई‑मेल की सही जानकारी देनी अनिवार्य है, नहीं तो नोटिफिकेशन व जाँच में समस्या हो सकती है। विभाग ने “डिजिटल साक्ष्य मैनुअल” में उल्लेख किया है कि केवल एन्क्रिप्टेड डेटा को ही समय‑समय पर रिव्यू किया जाएगा। यदि कोई टैक्सपेयर अपनी पासवर्ड नहीं देता, तो अधिकारी “सर्च‑सीज़र” के तहत डेटा को सुरक्षित परिधि में ले सकते हैं। इस प्रक्रिया में किसी भी गैर‑अधिकृत व्यक्ति को डेटा तक पहुँच नहीं मिल पायेगी, इसका लक्ष्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है। इसलिए, सभी टैक्सपेयर को अपने डिजिटल डिवाइस का बैक‑अप रखकर, अपने क्रेडेंशियल्स को अपडेट रखना चाहिए।

Deepanshu Aggarwal

बिल्कुल, अपडेट रखो, वरना फिर ट्रबल! 😊

akshay sharma

आगे चलकर ये सरकार कहेगी “डेटा सबका, सुरक्षा हमारा”! सच में, अगर AI हर ट्रांजैक्शन देखेगा तो रैडिकल बदलाव आ जाएगा। लेकिन अगर नैन्य‑नियंत्रण नहीं होगा तो टैक्सपेयर का जीवन बिगड़ सकता है। इस नीति को सही ढंग से लागू करने में सिर्फ़ नियम नहीं, बल्कि दिल‑दिमाग दोनों का संतुलन चाहिए।