छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों पर रोक, अब सिर्फ NCERT या राज्य बोर्ड की किताबें लागू

छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों पर रोक, अब सिर्फ NCERT या राज्य बोर्ड की किताबें लागू

निजी स्कूलों में किताबों का नया नियम

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में जिला शिक्षा अधिकारी के एक फैसले ने निजी स्कूलों में पढ़ाई का तरीका बदल दिया है। अब जिले के सभी निजी स्कूलों में NCERT या राज्य पाठ्यपुस्तक निगम की सिर्फ सरकारी मान्य किताबें ही चलेंगी। प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। यह आदेश जून 2025 के आखिर में लागू किया गया और इसके बाद से स्कूल प्रशासन, अभिभावक और बच्चे—तीनों के सामने परेशानियां आ गई हैं।

CBSE से जुड़े स्कूलों को NCERT किताबें ही चलानी होंगी, जबकि छत्तीसगढ़ राज्य बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में केवल स्टेट टेक्स्टबूक कॉरपोरेशन (पाठ्यपुस्तक निगम) की किताबें चलेंगी। आदेश में खासतौर पर यह कहा गया है कि कोई भी स्कूल न तो प्राइवेट किताबें बेच सकता है, न ही पैरेंट्स पर इन किताबों को खरीदने का दबाव डाल सकता है।

मां-बाप पर दोहरी मार, स्कूलों में नई मुसीबत

इस आदेश का वक़्त भी सब पर भारी पड़ गया। अप्रैल में स्कूल खुलने के बाद बच्चे दो महीने से पढ़ाई कर रहे थे और कई परिवारों ने किताबें पहले ही खरीद ली थीं। अब सरकार का आदेश आया तो पैरेंट्स को दोबारा किताब खरीदने का डर सता रहा है।

रायपुर के व्यापारी धलेन्द्र साहू की कहानी बहुतों के हालात बता देती है। 25-28 हजार महीने कमाने वाले साहू ने तीन बेटियों के लिए दस हजार रुपए की किताबें खरीद लीं। अगर सिलेबस बदलता है तो सैकड़ों अभिभावक मुश्किल में पड़ जाएंगे, क्योंकि दोबारा किताबें खरीदना आसान नहीं।

एक और समस्या—सरकारी फ्री किताबों की सप्लाई में देरी। अप्रैल में स्कूल शुरू हुए, लेकिन मुफ्त किताबें जुलाई में आईं। तब तक कई लोग मजबूरी में बाजार से निजी किताबें खरीद चुके थे।

  • स्कूल अब बच्चों को यूनिफॉर्म के सामान—जूते, मौजे, बेल्ट—भी नहीं बेच पाएंगे।
  • कोई स्कूल प्राइवेट पब्लिशर या दुकान से जबरदस्ती किताबें नहीं दिलवा सकता।
  • आदेश का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर कार्रवाई का खतरा बना रहेगा।

सरकारी तर्क यही है कि इससे परिवारों पर आता खर्च कम होगा और स्कूलों द्वारा मोटी कमाई का रास्ता बंद होगा। लेकिन हकीकत में अचानक नियम लागू करने से आम पैरेंट्स की जेब पर बोझ बढ़ गया। जिम्मेदार अधिकारी यह मानते हैं कि निजी स्कूलों पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार कम करने के लिए यह कदम जरूरी था। लेकिन जिन परिवारों ने पहले ही किताबें खरीद ली, वे अब असमंजस में हैं। नया आदेश आने के बाद पढ़ाई के पूरे माहौल में खलल पड़ गया है।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।