जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा पुनः स्थापित करने की मांग और पीएम मोदी से अब्दुल्ला की मुलाक़ात का प्रस्ताव

जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा पुनः स्थापित करने की मांग और पीएम मोदी से अब्दुल्ला की मुलाक़ात का प्रस्ताव

जम्मू-कश्मीर की राज्य की बहाली की दिशा में बड़ा कदम

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसमें केंद्र सरकार से राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की गई है। इस प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय के साथ संलग्न कर दिया गया है ताकि इसका मार्ग प्रशस्त किया जा सके। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया। अब्दुल्ला ने इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर आहूत किया है, ताकि जम्मू-कश्मीर को उनका मूल संवैधानिक रूप पुनः मिल सके।

राज्य के लोगों के अधिकार और पहचान की सुरक्षा

यह प्रस्ताव राज्य की संवैधानिक रक्षा और जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। 2019 में अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने के बाद, राज्य की स्थिति को पुनः प्राप्त करने की दिशा में यह मांग महत्वपूर्ण हो गई है। केंद्रशासित प्रदेशों का गठन करने के दौरान इससे होने वाले सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राज्य की जनता के संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए यह प्रस्ताव एक अहम पहल है।

उमर अब्दुल्ला की दिल्ली यात्रा और पीएम मोदी से बातचीत

उमर अब्दुल्ला आने वाले दिनों में दिल्ली का दौरा करेंगे और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत करेंगे। राष्ट्रीय सम्मेलन के नेतृत्व वाले गठबंधन ने प्रस्ताव का समर्थन किया है, और कांग्रेस, जो राष्ट्रीय सम्मेलन की सहयोगी है, ने यह एलान किया है कि जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से राज्य का दर्जा नहीं मिलता, तब तक वे सरकार में शामिल नहीं होंगे। यह प्रस्ताव कश्मीर की राजनीतिक स्थिति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

विधानसभा का अधिवेशन और अनुभवों का साझा

इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का अधिवेशन 4 नवंबर को बुलाए जाने की तैयारी है। इसके पहले सत्र के उद्घाटन के अवसर पर उपराज्यपाल के भाषण का मसौदा भी मंत्रिपरिषद के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर की राजनीति और समाज में छाए हुए संकट को हल करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। इस परिस्थितियों में राजनीतिक दलों की भूमिका और उनकी सक्रियता भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

राजनैतिक कैनवस पर यह प्रस्ताव एक नई दिशा की ओर बढ़ने का संकेत है। हालांकि, यह गौरतलब है कि इस प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 और 35A का जिक्र नहीं किया गया है, जो इन समयों में खासा महत्वपूर्ण है। तब भी राज्य के मूल संवैधानिक स्थिति को पुनः स्थापित करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो जम्मू-कश्मीर के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को समर्थन देता है। उम्मीद है कि यह कदम जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थिरता वापस लाने में मदद करेगा।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

saurabh waghmare

जम्मू-कश्मीर की राज्यभक्ति की भावना को पुनः स्थापित करने में यह प्रस्ताव एक सकारात्मक कदम है। यह कदम लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों की याद दिलाता है। इतिहास ने हमसे सीख लिया है कि लोकतंत्र में विचारों की विविधता को अपनाना आवश्यक है। अब्दुल्ला जी की दिल्ली यात्रा को समर्थन देना चाहिए, ताकि संवाद का रास्ता खुल सके। आशा है कि इस प्रक्रिया से शांति और विकास दोनों को बढ़ावा मिलेगा।

Madhav Kumthekar

सच्चाई ये है कि 2019 के बाद से जमे हुए कई मुद्दे अभी भी हल नहीं हुए हैं। अगर केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेती है तो क्षेत्र में विश्वास बढ़ेगा। इससे युवा वर्ग के रोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं। देखते हैं आगे क्या कदम उठाये जाते हैं।

Deepanshu Aggarwal

बिल्कुल सही बात है, ये बदलाव लोगों के दिलों में उम्मीद की लौ जलाएगा 😊। संविधानिक सुरक्षा का सवाल हमेशा से ही अहम रहा है। अब जब उमर अब्दुल्ला जी इस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तो जनता का भरोसा फिर से कायम हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रस्ताव को जल्दी से जल्दी लागू करे। इस प्रयास में हमें सभी का सहयोग चाहिए।

akshay sharma

क्या बात है, आखिरकार किसी ने फिर से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाने की हिम्मत की! यह एक बहुत बड़ा तमाशा होगा या सच्चा बदलाव? अगर यह सब सिर्फ सरकार का प्रदर्शन है तो जनता को फिर से निराशा झेलनी पड़ेगी। लेकिन अगर सच में इस प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 और 35ए की जगह है तो यह इतिहास में नया पन्ना लिखेगा। हमें देखना होगा कि क्या यह बात सिर्फ शब्दों में ही रहेगी या जमीन पर उतरेगी।

Anand mishra

जब हम जम्मू-कश्मीर की संस्कृति और इतिहास को देखते हैं, तो हमें समझ में आता है कि यहाँ के लोग कितनी गहरी जड़ें रखते हैं। इस प्रदेश की पहाड़ी वादियों में बसी विविधता को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। राज्य की बहाली से न केवल प्रशासनिक स्थिरता आएगी, बल्कि स्थानीय व्यवसायों को भी नई दिशा मिलेगी। पर्यटन के विकास में भी बड़ी संभावनाएं खुलेंगी, क्योंकि लोग फिर से सुरक्षित महसूस करेंगे। इसके अलावा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आशा भी बढ़ेगी। इस प्रकार, यह प्रस्ताव कई स्तरों पर लाभकारी हो सकता है, बशर्ते इसे सुचारू रूप से लागू किया जाए।

Prakhar Ojha

ये सब बातें सुनते-समझते समय बर्बाद हो रहा है, असली मुद्दा तो यह है कि कब तक जनता को बकवास सुनाने में सरकार लगेगी! अगर राज्य की बहाली वाकई में चाहते हैं तो तुरंत कार्रवाई करो, नहीं तो सब गड़बड़ हो जाएगा। इसके पीछे के राजनैतिक खेल को छोड़ो, लोग असली राहत चाहते हैं। अभी तो यही उम्मीद है कि यह प्रस्ताव सिर्फ कागज़ पर नहीं रहेगा।

Pawan Suryawanshi

बहुत बढ़िया, उम्मीद है जल्द ही काम शुरू होगा 🚀

Harshada Warrier

ऐसे प्रस्ताव तो पहले भी दिखे थे, पर सब फेक निकले थी। क्या पता इस बार भी कोई बड़ा प्लॉट चल रहा हो, सरकार के पीछे कोई साया खेल रहा हो। सब खबरें एक ही दिशा में मोड़ रही है, समझ नहीं आता। शायद इस बार भी खोपड़ी पर धब्बा ही रहेगा।

Jyoti Bhuyan

सही कहा, हर बार नई आशा लेकर आते हैं, पर काम के साथ नहीं तो बस बातें ही रह जाती हैं। हमें इस प्रक्रिया में सक्रिय रहना चाहिए, अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। यदि सभी मिलकर समर्थन दिखाएँगे तो परिवर्तन संभव है। चलो, हम सब एकजुट हों और इसे साकार बनायें!

Sreenivas P Kamath

वाह, अब फिर से जयकारे गाएंगे कि राज्य बना दिया जाएगा, पर वास्तविकता में क्या बदलाव आएगा, देखते रहेंगे। शायद फिर से वही पुराने वादे और खाली वादे ही रह जाएंगे। अगर सच्ची मेहनत नहीं हुई तो यह सब बस एक शो बन कर रहेगा।

Chandan kumar

देखो भाई, इस बार भी वही बातें दोहराई जा रही हैं, पर कोई नया प्लान नहीं दिख रहा। पुरानी क्लासिक है ये, बस एक बार फिर से चलाने की कोशिश।

Swapnil Kapoor

वास्तव में इस प्रस्ताव में कई कानूनी जटिलताएँ हैं, जिन्हें नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अगर संविधानिक संशोधन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो यह कदम अस्थायी रहेगा। इसलिए सभी पक्षों को मिलकर विस्तृत चर्चा करनी चाहिए, ताकि भविष्य में स्थायी समाधान निकले। यही सबसे व्यावहारिक कदम है।

kuldeep singh

यह प्रस्ताव एक बड़े खेल का हिस्सा लग रहा है, जहाँ सभी खिलाड़ी खुद को नायक दिखा रहे हैं लेकिन असलियत कुछ और ही है। पहले तो सबने कहा था कि राज्य की बहाली से शांति आएगी, लेकिन अब देखिए कैसे हर कोई अपनी ही मंशा छिपा रहा है। इस दस्तावेज़ में अनुच्छेद 370 और 35ए का उल्लेख नहीं है, जो कि दर्शाता है कि सरकार अभी भी अपने हाथ में बहुत सारा कर्तव्य रखती है। मीडिया भी इस पर पक्षपाती कवरेज दे रही है, जिससे जनधारणा में विकृति आती है। कई बार ऐसा होता है कि किसी बड़ी घोषणा के बाद असली कार्रवाई के बिना ही सब कुछ समाप्त हो जाता है। अतिवादियों ने इसे एक अवसर माना है, जिससे वे अपनी राजनीति को और भी आगे बढ़ा सकें। इस तथ्य को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि स्थानीय जनता के बीच अभी भी विभाजन बना हुआ है। यदि इस प्रस्ताव को सही ढंग से लागू नहीं किया गया तो यह फिर से सामाजिक तनाव का कारण बन सकता है। वास्तविक मुद्दा तो यह है कि इस प्रस्ताव के पीछे कौन से आर्थिक हित छिपे हैं, जो आम जनता की दृष्टि से अस्पष्ट हैं। इस पहल में कई अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेंगे, जैसे कि भूमि अधिग्रहण, निवेश नीति, और रोजगार के अवसर। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यह प्रक्रिया बहुत धीमी और जटिल होगी, जिससे जनता का भरोसा टूट जाएगा। वहीँ इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि सुरक्षा बलों की भूमिका कैसे बदल सकती है, क्योंकि इससे क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। दलीलों और तर्कों के बीच अक्सर भावनात्मक अपील बड़ी बन जाती है, जिससे वास्तविक समस्या का समाधान धुंधला हो जाता है। इस सब के बीच हमें यह समझना चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में धैर्य और पारदर्शिता आवश्यक है। यदि राजनीतिक वर्ग इस मुद्दे को केवल वोट बैंक तक सीमित रखेगा तो विकास की राह में बाधा आएगी। अंत में, यह कहा जा सकता है कि इस प्रस्ताव को सफल बनाने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को मिलकर काम करना पड़ेगा, नहीं तो यह सिर्फ एक और भ्रामक वादा रहेगा।

Shweta Tiwari

उपरोक्त विश्लेषण में कई प्रमुख बिंदुओं को उजागर किया गया है, जो वास्तव में नीति निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से अनुच्छेद 370 एवं 35ए की अनुपस्थिति को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण होना आवश्यक है। यदि हम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को दृष्टि में रखें तो यह परिवर्तन केवल विधायी नहीं, बल्कि सामाजिक भी होना चाहिए। इसलिए मैं प्रस्तावित करता हूँ कि एक स्वतंत्र आयोग स्थापित किया जाए, जो सभी पक्षों के मतों को संकलित कर उचित समाधान प्रस्तुत करे। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयसीमा दोनों का पालन किया जाना चाहिए। इस प्रकार, इस प्रस्ताव को वास्तविकता में लाने के लिये एक व्यापक संवाद आवश्यक है।

Harman Vartej

सभी को मिलजुल कर काम करना चाहिए, ताकि स्थायी शांति आए।

Amar Rams

इंसाइट फॉर्मेटिव प्रॉसेस के तहत, इस प्रस्ताव का इम्प्लीमेंटेशन स्ट्रैटेजी को पुनः कैलिब्रेट करने की आवश्यकता है। विशेषकर कॉन्टेक्स्टुअल पॉलिटिक्स को ध्यान में रखते हुए, एक मल्टी-डायमेन्शनल फ्रेमवर्क विकसित किया जाना चाहिए।

Rahul Sarker

यह सब बातों का चक्रव्यूह केवल राष्ट्रीय हित के खिलाफ है! हमें तुरंत कदम उठाकर इस प्रस्ताव को अस्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यह हमारी संप्रभुता को खतरे में डाल रहा है। अगर सरकार इस तरह के झूठे वादों से जनता को धोखा देती रही तो यह अनुशासनहीनता का संकेत है। हमें इस राष्ट्रीय मुद्दे पर सख्त रुख अपनाना चाहिए और विदेशी हस्तक्षेप को रोकना चाहिए।

Sridhar Ilango

सब लोग कहते हैं कि यह प्रस्ताव एक बड़ी सफलता होगी, लेकिन मैं कहता हूँ कि यह सिर्फ एक परदे के पीछे की छिपी हुई चाल है। अक्सर हमें दिखावे वाले फैसलों में फँसा दिया जाता है, जो अंततः जनता को अंधा कर देते हैं। अगर हम इस प्रस्ताव को बिना गहरी जाँच के स्वीकार करेंगे, तो भविष्य में बड़े समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। मैं मानता हूँ कि हमें इस मुद्दे को पूरी तरह से पुन: मूल्यांकन करना चाहिए, और केवल सतही प्रभावों के आधार पर नहीं चलना चाहिए। इस प्रकार की नीति का प्रभाव केवल राजनीतिक समीक्षकों के लिए ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों के जीवन पर भी पड़ेगा। इसलिए, हमें तर्कसंगत और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, बजाय भावनात्मक अपीलों के।

priyanka Prakash

आपकी बात में कुछ सच्चाई है, पर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसलिए इस प्रस्ताव के सभी पहलुओं को सावधानी से देखना आवश्यक है।

Pravalika Sweety

सभी दृष्टिकोणों को समझते हुए, हमें एक संतुलित समाधान निकालना चाहिए जो प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय एकता दोनों को सम्मान दे। इस मध्यस्थता प्रक्रिया में सभी स्तरों की भागीदारी आवश्यक होगी।