मनमोहन सिंह की मृत्यु: 92 साल की उम्र में AIIMS दिल्ली में राष्ट्रीय शोक

मनमोहन सिंह की मृत्यु: 92 साल की उम्र में AIIMS दिल्ली में राष्ट्रीय शोक

मनमोहन सिंह का निधन भारत के राजनीतिक इतिहास में एक बड़ा झटका बनकर आया। 26 दिसंबर 2024 को शाम को देर तक दिल्ली के एआईएमएस में उनका पश्चातापवश अंत हुआ, जब 92 साल की उम्र में वह अस्पताल में पहुँचाए जाने के लगभग दो घंटे बाद ही उनका निधन घोषित किया गया।

अंतिम क्षण और अस्पताल में उपचार

डॉ. सिंह ने अपने घर में अचानक बेहोशी का सामना किया। यह घटना शाम को 8:06 बजे हुई, जिसके तुरंत बाद परिवार ने आपातकालीन सेवाओं को बुला कर उन्हें एआईएमएस के मेडिकल इमरजेंसी वार्ड में ले गये। एआईएमएस के अधिकारी बताते हैं कि घर में ही पुनर्जीवन के प्रयत्न शुरू किए गए और अस्पताल पहुँचते ही इन प्रयासों को जारी रखा गया।

डॉक्टर्स ने हर संभव उपाय अपनाया, लेकिन उम्र से जुड़ी जटिलताओं के कारण उन्हें पुनर्जीवित नहीं किया जा सका। अन्तिम साँसें ले कर 9:51 बजे उनका निधन हो गया। उनका शरीर तीन मोटिलाल नहरू मार्ग के घर पर पहुँचा, जहाँ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वर्द्रा ने शोक अभिव्यक्त किया।

राष्ट्रीय शोक, अंतिम संस्कार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

राष्ट्रीय शोक, अंतिम संस्कार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

सरकार ने तुरंत सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया। दिल्ली में 28 दिसंबर को 21‑तोपहल्ला सहित पूरी राजकीय शोक समाप्ति कार्यक्रम आयोजित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक में भाग लिया। विदेशी प्रतिनिधियों में भारत‑भूटान के राजा जिग्मे खेसर नम्घेल वांगचुंक और मॉरीशस के विदेश मंत्री ध्नंजय रामफुल भी शामिल थे। अंतिम संस्कार में उनकी बड़ी बेटी ने श्मशान घाट पर अन्तिम अर्घ्य दिया।

राजनीतिक समीक्षकों और अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने भी गहरा शोक व्यक्त किया। भूपेश बघेल ने कहा कि यह "देश के लिए अपरिवर्तनीय क्षति" है, जबकि गुलाम नबी आज़ाद ने उन्हें "भुलाया नहीं जा सकेगा" कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन्हें "सच्चे राजनेता, समर्पित सेवक और विनम्र व्यक्ति" के रूप में सराहा, और विदेश सचिव एंटोनी ब्लिंकन ने भारत‑अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में उनकी भूमिका को अपनाने की बात कही। वेनेजुएला की सरकार ने उन्हें "दर्शनीय नेता" कहा और भारत के आर्थिक परिवर्तन में उनके योगदान को सराहा।

डॉ. सिंह के निधन के बाद सरकार ने एक ट्रस्ट बनाकर उनका स्मारक स्थापित करने की योजना भी घोषित की। इस स्मारक के लिए विशेष स्थान आवंटित किया जाएगा, जिससे भविष्य की पीढ़ियों को उनके विचारों और आर्थिक सुधारों से प्रेरणा मिल सके।

मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलते हुए 1991 के आर्थिक सुधारों को आमंत्रित किया, जिसने भारत को वैश्विक मंच पर नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया। दो लगातार पांच साल के प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने सामाजिक सुरक्षा, विज्ञान‑प्रौद्योगिकी और विदेश नीति में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। राज सभा में 33 साल तक सेवा करने के बाद 2024 में उन्होंने अपना पद त्याग दिया, लेकिन उनका प्रभाव आज भी भारतीय राजनैतिक और आर्थिक दिशा में स्पष्ट दिखता है।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Prakhar Ojha

मनमोहन सिंह की मौत पर राष्ट्रीय शोक का मंचन असहनीय है, जैसे दिल के धड़कन से बिजली निकाल दी गई हो। उनका योगदान बहुत बड़ा था, पर अब सब प्रश्न पूछते हैं कि क्या उनका आर्थिक सुधार अब भी चल रहे हैं? इस बात पर विचार करना अभी जरूरी है।

Pawan Suryawanshi

सच में, मनमोहन जी का कार्यकाल भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा देता रहा 🌟
उनके 1991 के सुधारों ने कई लोगों को रोजगार दिया और वैश्विक निवेश को आकर्षित किया।
ऐसा लगता है कि उनका प्रभाव अभी भी कई नीतियों में झलकता है, और हमें उसकी सराहना करनी चाहिए। 😊

Harshada Warrier

आरे राब सेंसरशिप फॉर हायर रैंकिंग! सरकार के पीछे के मोटर चक्र में कुछ गुप्त एलायन्स है, कौनू जानता? इस सब सच्चाइयों को खुल्ला कर देना चाहिए, वरना फोकस्ड एजेंडा आगे बढ़ेगा।

Jyoti Bhuyan

हर बार जब मैं मनमोहन जी के सुधारों को याद करता हूँ, तो दिल में एक नई ऊर्जा जागती है। उनका विज़न आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करता है। चलिए हम सब मिलकर इस विरासत को आगे बढ़ाएँ, क्योंकि भविष्य हमारी सोच पर निर्भर है।

Sreenivas P Kamath

ओह, मेरे दोस्त, अब जब सब हश्र् हो गया तो हम सब के पास सिर्फ़ विडंबना बची है। मनमोहन सिंह का "आर्थिक उदारता" वाला मॉडल तो अब म्यूजियम में दाखिल हो गया। सच में, क्या ये सब सरकासे का खेल था? 🙄

Chandan kumar

बिलकुल कूल, बस एक बात कहूँगा कि एइसी बातें सुनकर आगे क्या करना है, समझ नहीं आता। लोगों को बस फॉलो करना पड़ता है, बाकी सब बेकार।

Swapnil Kapoor

मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों को समझना आसान नहीं है, लेकिन कुछ बुनियादी बिंदु हैं जिन्हें हम स्पष्ट कर सकते हैं।
पहला, 1991 में उन्होंने जीवंत विनिमय दर प्रणाली अपनाई, जिससे भारतीय रुपये की लचीलापन बढ़ी।
दूसरा, उन्होंने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को आसान बनाया, जिससे बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी बढ़ी।
तीसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSUs) को निजीकरण किया, जिससे दक्षता में उल्लेखनीय सुधार आया।
चौथा, उन्होंने कर प्रणाली को केंद्रीकृत किया और जटिल कर ढांचे को सरल बनाया, जिससे राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई।
पाँचवा पहल था निर्यात को बढ़ावा देना, जिसमें निर्यात-उन्मुख नीतियों और सब्सिडी को लागू किया गया।
छठा, उन्होंने वित्तीय क्षेत्र को मुक्त किया, जिससे बैंकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता मिली।
सातवाँ, उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी (IT) को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाई, जिससे भारत का सॉफ़्टवेयर निर्यात वैश्विक स्तर पर पहुंचे।
आठवाँ, उन्होंने सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क को सुदृढ़ किया, जिससे आर्थिक असमानता को घटाने में मदद मिली।
नौवां, उन्होंने कृषि सुधारों को भी जारी रखा, विशेषकर बीज और सिंचन के क्षेत्रों में निवेश करके उत्पादन क्षमता बढ़ाई।
दसवाँ, उन्होंने वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित किया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवा पहुँचाई गई।
ग्यारहवाँ, उन्होंने विदेशी ऋण पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू बचत को प्रोत्साहित किया।
बारहवाँ, उन्होंने सार्वजनिक लाभकारी संस्थानों में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए नियामक फ्रेमवर्क स्थापित किया।
तेरहवाँ, ऊर्जा नीति में नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा दिया, जिससे सतत विकास के लक्ष्यों को समर्थन मिला।
चौदहवाँ, उन्होंने शिक्षा में आर्थिक सिद्धांतों को सम्मिलित किया, जिससे अर्थशास्त्र के शिक्षण में सुधार हुआ।
पंद्रहवाँ, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों को साकार किया, जिससे भारत की वैश्विक व्यापार स्थिति मजबूत हुई।
इन सभी बिंदुओं को मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बहु-आयामी रूप से बदल दिया, जिससे आज का भारत वैश्विक आर्थिक मंच पर उपस्थित है।