Sameer Wankhede ने Shah Rukh Khan और Netflix के खिलाफ 2 करोड़ की मानहानि का मुकदमा दायर किया

Sameer Wankhede ने Shah Rukh Khan और Netflix के खिलाफ 2 करोड़ की मानहानि का मुकदमा दायर किया

मुकदमे की पृष्ठभूमि

सितंबर 2025 में Netflix पर रिलीज़ हुई वेब‑सीरीज़ ‘The Ba***ds of Bollywood’ Aryan Khan की पहली निर्देशन फिल्म है। इस सीरीज़ में पहले एपिसोड में एक पुलिस अधिकारी का किरदार दिखाया गया, जो बेकाबू ड्रग लॉबिंग के खिलाफ सशक्त भाषण देता है और बॉलीवुड को ‘ड्रग‑सम्बंधित’ कहता है। इस किरदार की उपस्थिति ने Sameer Wankhede को बहुत परेशान किया, क्योंकि उनका दिखावा, पहनावा और शैली बिल्कुल उनके जैसा था।

Wankhede ने 2021 में Aryan Khan को ड्रग केस में गिरफ़्तार करने वाले अधिकारी के रूप में काफी सुर्खियों में आया था। तब से उनके और खान परिवार के बीच तनाव बना रहा, और इस नई सीरीज़ ने उस नाराज़गी को फिर से बड़ते हुए उभारा। इस वजह से Wankhede ने दिल्ली हाई कोर्ट में defamation lawsuit दायर किया, जिसमें उन्होंने 2 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की और उसे Tata Memorial Cancer Hospital को दान करने का प्रस्ताव रखा।

शिकायत में उन्होंने Red Chillies Entertainment, Netflix, X Corp, Google, Meta Platforms, RPG Lifestyle Media और कई अनजान ‘John Does’ को प्रतिवादी बताया। उनका कहना है कि यह सीरीज़ जानबूझकर उनकी प्रतिष्ठा को नीचा दिखाने और जनता का भरोसा कानून व्यवस्था पर से दूर करने के इरादे से बनी है।

अदालत में सुनवाई व वर्तमान स्थिति

दिल्ली हाई कोर्ट में फरवरी के एक अदालती सुनवाई में जस्टिस कौरव ने मुकदमे के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्यों Wankhede ने केस दिल्ली में दाखिल किया, जबकि अधिकांश घटनाएँ और प्रतिवादी मुंबई में स्थित हैं। कोर्ट ने Wankhede को अपने याचिका में सुधार करने और अधिकार क्षेत्र के मुद्दे को स्पष्ट करने का आदेश दिया।

जज ने यह भी दर्शाया कि इस मुकदमे को शायद सुनवाई योग्य नहीं माना जा सकता, जिससे Wankhede को शुरुआती चरण में कोई राहत नहीं मिली। यह रफ़्तार से चल रहे कानूनी टकराव में एक नई मोड़ है, क्योंकि अब तक के बयान में यह स्पष्ट है कि मामला अभी भी मुकदमेबाज़ी की राह पर है।

इसी बीच Wankhede की पत्नी, मराठी अभिनेत्री Kranti Redkar ने सोशल मीडिया पर कुछ रहस्यमय पोस्ट शेयर किए, जिन्हें कई लोगों ने इस झड़प की ओर संकेत माना। उनका पोस्ट अक्सर छिपी हुई शब्दों और संकेतों से भरपूर रहता है, जिससे मीडिया ने इस मामले को और अधिक रोचक बना दिया।

वर्तमान में Aryan Khan का ड्रग केस अभी भी मुंबई उच्च न्यायालय और विशेष ड्रग केस कोर्ट में चल रहा है। जबकि Wankhede का मुकदमा अभी भी अधिकार क्षेत्र के सवालों के कारण परिधि में है, दोनों पक्षों के बीच यह कानूनी द्वंद्व जारी रहेगा। इस प्रकार, बॉलीवुड की इस नई सीरीज़ ने सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि कानून, मीडिया और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के जटिल मुद्दों को भी उजागर किया है।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

MANOJ SINGH

वाकई में Sameer Wankhede का मामला दिलचस्प है।
उन्होंने अपनी शौहरत की रक्षा के लिए कानूनी कदम उठाए हैं, जो पूरी फिल्म इंडस्ट्री को चेतावनी देता है।
ड्रग‑सम्बंधित कथनों को गालियां देना और वास्तविक व्यक्ति को बेजान बनाना न्याय के सामने खड़ा होना चाहिए।
अगर Netflix ऐसा जारी रखता है तो कई कलाकार भी असहज महसूस करेंगे।
यह केस कोर्ट में कैसे बदलेगा, सबको नज़र रखनी चाहिए।

Vaibhav Singh

ये सीरीज़ सिर्फ पॉप्युलर कंटेंट नहीं, बल्कि अपमानजनक खिलवाड़ है।

Vaibhav Kashav

अरे वाह, कहानी में वही पुलिस वाला जो वास्तविक जीवन में दो साल पहले नाबालिगों को पकड़ता था, अब टीवी पर नकल बन गया।
इतनी मज़ेदार सच्चाई को दर्शाने की ज़रूरत नहीं थी।
बस, यही तो Netflix का नया फॉर्मूला है।

saurabh waghmare

समाज में जब भी कोई सार्वजनिक व्यक्ति की छवि को गलत तरीके से पेश किया जाता है, तो कानूनी कार्रवाई आवश्यक हो जाती है।
इस मामले में Sameer Wankhede ने अदालत में अपना पक्ष स्थापित करने की कोशिश की है, जो सराहनीय है।
साथ ही, अगर मुआवजा Tata Memorial Hospital को देना चाहते हैं, तो यह सामाजिक योगदान भी दर्शाता है।
अदालत के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करना भी न्यायालय की प्रक्रिया को सुगम बनाता है।
आशा है कि न्याय शीघ्र होगा।

Madhav Kumthekar

कानूनी तौर पर, मानहानि के तहत दो मुख्य प्रकार होते हैं – लिखित (libel) और मौखिक (slander)।
यहाँ Netflix की वेब‑सीरीज़ लिखित रूप में मानी जाएगी, इसलिए वक़्त पर दावे और साक्ष्य पेश करना ज़रूरी है।
यदि Sameer Wankhede के पास यह प्रमाण है कि उनका किरदार वास्तविक जीवन में उनका प्रतिबिंब है, तो अदालत अधिकार क्षेत्र को सही ठहरा सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट को इस मुद्दे पर विस्तृत याचिका चाहिए होगी।
इस प्रकार की केस में आमतौर पर मुआवजे की राशि तय करने में कई कारकों का ध्यान रखा जाता है।

Deepanshu Aggarwal

मैं समझता हूँ कि Wankhede को अपनी पहचान की सुरक्षा चाहिए 😊 लेकिन एक ओर Netflix का क्रिएटिव फ़्रीडम भी है।
दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।
अगर न्यायालय उचित समाधान दे पाए तो दोनों को ही फायदा हो सकता है 🙏

akshay sharma

भाई साहब, ये तो वही पुरानी ड्रामा कहानियां हैं जहाँ अभिनेता का नाम लेकर विवाद उठता है, और जनता को पॉपकॉर्न की तरह खलिहान बनाकर बैठा दिया जाता है।
Netflix ने तो बिल्कुल बिंज‑वॉचिंग की तरह इस केस को हाई-राइटस बना दिया, जैसे किसी सस्पेंस थ्रिलर में चॉक्सी ने मामा को गाली दी हो!
ऐसे में, अगर कोर्ट इसे सिर्फ़ एक छोटी‑सी दावे की तरह मान ले, तो इंडस्ट्री में कई कलाकारों की हिम्मत टूट जाएगी।
मैं कहूँगा, न्याय का तैला फिर से ठोकर खा जाएगा, जब तक कि सबको मुँह में पानी नहीं आता देखेंगे।
अब बस देखते हैं, कौन जीतता है इस दावत में – वक़्त या इंट्रस्ट।

Shruti Thar

Defamation के लिए plaintiff को साबित करना होता है कि statement false और defamatory है।

Nath FORGEAU

yeh netflix ka show sach me thoda over itna drama dekhane layak na lag rha. maan lo ki yeh bas ek fictional kahani hai, par logon ko real life pe impact kar raha hai.

Hrishikesh Kesarkar

यदि केस डेलीजेंस नहीं होगी तो कोर्ट से dismissal हो सकता है।

Manu Atelier

मानहानि के मामलों में न्यायालय को यह देखना आवश्यक है कि क्या सार्वजनिक हित में बताया गया है या व्यक्तिगत अपमान का लक्ष्य है।
इस संदर्भ में, Sameer Wankhede के दावे को तथ्यों के साथ समर्थन चाहिए।
अदालत को अधिकार क्षेत्र की समस्या को भी स्पष्ट करना होगा।
अंततः, निपटारा कानूनी सिद्धांतों के अनुसार ही होना चाहिए।

Anu Deep

बॉलीवुड की कहानी कहने की शैली अक्सर वास्तविक घटनाओं से प्रेरित होती है, लेकिन जब वह व्यक्तियों की पहचान को लेकर संवेदनशील बन जाती है तो सवाल उठते हैं कि किस हद तक रचनात्मक स्वतंत्रता को सीमित किया जाना चाहिए।

Preeti Panwar

समझ सकता हूँ कि Sameer भाई को अपनी छवि के लिए चिंतित होना पड़ रहा है 😔 लेकिन साथ ही कलाकारों को भी रचनात्मक स्वतंत्रता चाहिए 🙏 सभी के अधिकारों का संतुलन बनाना ही न्याय होगा।

harshit malhotra

यह मामला सिर्फ दो करोड़ रुपये के मुआवजे तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की सिनेमा उद्योग में अभिव्यक्ति की सीमा को परिभाषित करने का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है।
जब Sameer Wankhede ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, तो उन्होंने केवल अपने व्यक्तिगत सम्मान को नहीं बचाने की कोशिश की, बल्कि सभी ऐसे व्यक्तियों को आवाज़ दी जो साइबर या टीवी माध्यमों में गलत रूप में पेश होते हैं।
Netflix जैसी बड़ी स्ट्रीमिंग कंपनी को अक्सर रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर विवादास्पद कंटेंट दिखाने की स्वतंत्रता मिलती है, परंतु यह स्वतंत्रता सामाजिक और कानूनी प्रतिबंधों के साथ संतुलित होनी चाहिए।
इस केस में मुख्य दलील यह है कि ‘The Ba***ds of Bollywood’ में Sameer Wankweed जैसा किरदार उनके वास्तविक जीवन के अनुभवों को बदनाम करने के इरादे से बनाया गया है।
यदि ऐसा साबित हो जाता है, तो यह स्पष्ट संकेत देगा कि सार्वजनिक व्यक्तियों के वास्तविक जीवन को मनोरंजन के लिए साधन बनाना मानहानि के दायरे में आता है।
दूसरी ओर, अदालत को यह भी देखना होगा कि क्या Netflix ने उचित रूप से तथ्यात्मक साक्ष्य के बिना किसी को कलंकित किया है या वह केवल कल्पित कहानी है।
भारतीय मानहानि कानून के तहत, बिनॉइटेड डिसजंक्शन के लिए plaintiff को यह स्थापित करना होता है कि स्टेटमेंट फॉल्स है और उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है।
इस प्रक्रिया में, जब भी कोई सार्वजनिक व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मुकदमा करता है, तो न्यायालय को यह संतुलन बनाना पड़ता है कि क्या यह जनता के हित में इस तरह की बात को सार्वजनिक किया गया है।
अगर कोर्ट यह ठहराता है कि यह केवल एक काल्पनिक कथा है, तो Netflix को भविष्य में इसी तरह के पात्र बनाने में हिचकिचाहट नहीं होगी।
परन्तु यदि कोर्ट Sameer की शिकायत को मान्यता देता है, तो यह एक precedent स्थापित करेगा जो भविष्य में कई स्टार्स को अपने-अपने मामलों में सहायता प्रदान करेगा।
इसके अतिरिक्त, इस मुकदमे में अधिकार क्षेत्र की जाँच भी एक महत्वपूर्ण बिंदु रही है, क्योंकि अधिकांश घटनाएँ और प्रतिवादी मुंबई में स्थित हैं जबकि याचिका दिल्ली में दायर की गई थी।
न्यायालय के आदेश के अनुसार, यदि अधिकार क्षेत्र की समस्या को स्पष्ट किया गया, तो यह केस आगे बढ़ सकता है या फिर अस्वीकार हो सकता है।
इस प्रकार, इस कानूनी टकराव में सिर्फ वित्तीय मुआवजे का प्रश्न नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सम्मान के बीच संतुलन बनाना प्राथमिकता बन जाता है।
जनता को इस विवाद पर सावधान रहना चाहिए, क्योंकि मीडिया अक्सर sensationalism के लिए तथ्यात्मक जांच को पीछे छोड़ देता है।
अंत में, हमें आशा है कि न्यायपालिका इस जटिल मुद्दे को संतुलित और निष्पक्ष ढंग से सुलझाएगी, जिससे क़ानून के प्रभाव और सामाजिक नैतिकता दोनों को मजबूती मिलेगी।