शीतल देवी ने बनाया इतिहास: दुनिया की पहली बाँह‑रहित महिला धनुर्धार, पैरालिंपिक में कांस्य

शीतल देवी ने बनाया इतिहास: दुनिया की पहली बाँह‑रहित महिला धनुर्धार, पैरालिंपिक में कांस्य

जब शीतल देवी, किष्टवार (जम्मू और कश्मीर) में 10 जनवरी 2007 को जन्म ली, तो किसी ने नहीं सोचा था कि वह धनुर्विद्या की दुनिया में क्रांति लाएगी।

परिणामस्वरूप, 17 साल की उम्र में ही 2024 पैरालिंपिक, पेरिस के मिक्स्ड टीम कॉम्पाउंड में कांस्य पदक जीतकर शीतल ने न केवल भारत की सबसे युवा पैरालिंपिक पदकधारी का खिताब जमाया, बल्कि वह विश्व की पहली बाँह‑रहित महिला धनुर्धार भी बनी।

पार्श्वभूमि और बचपन

शीतल को जन्म से ही फोकोमेलिया नामक दुर्लभ विकार था, जिससे उसके दोनों हाथ पूरी तरह अनुपस्थित थे। उसका परिवार आर्थिक रूप से सीमित था, लेकिन ग्रामीण किष्टवार की समुदाय ने उसे हमेशा सशक्त किया। 2019 में एक स्थानीय युवा प्रतियोगिता में भाग लेते ही भारतीय सेना की राष्टीरि राइफल्स इकाई ने उसकी संभावनाओं को पहचाना और शैक्षणिक तथा चिकित्सा सहायता प्रदान की।

विशेष प्रशिक्षण और अनोखी तकनीक

2022 में शीतल का प्रशिक्षण आधिकारिक तौर पर शुरू हुआ, जब श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने उसके लिए वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध करवाईं। कोच अभिलाषा चौधरी का कहना था, "हमने मैट स्‍टज़मन की तकनीक को आधार बनाकर शीतल के लिए ‘शोल्डर‑रिलीज़र’ और ‘चिन‑माउथ‑ट्रिगर’ विकसित किया।" शीतल का तीर‑छड़ना अब पैर के पंजों से बैन के बांह को पकड़कर, दाँतों से ड्रॉ स्ट्रिंग को थामकर और कंधे की मांसपेशियों से इसे रिलीज़ करके किया जाता है। शुरुआती दिनों में वह रोज़ 50‑100 तीर मारती थी; दो साल बाद यह संख्या 300 तक पहुँच गई।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ और सफलता के पड़ाव

पहला बड़ा मोड़ आया जब उसने सोनेपत, हरियाणा में आयोजित पैरा ओपन नेशंस में टीम को सिल्वर दिलाया। इस जीत के बाद, 2023 की विश्व पैरालॉइंरिंग चैंपियनशिप, चेक गणराज्य में शीतल ने गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्झ की मेडल पाई, जिससे वह इतिहास की पहली बाँह‑रहित महिला धनुर्धार बन गई।

  • कॉम्पाउंड ओपन इंडिविडुअल – सिल्वर (जाने कार्ला, ब्राज़ील, 144‑142)
  • मिक्स्ड टीम – गोल्ड
  • वुमेन्स डबल्स – ब्रॉन्झ

साथ ही, एशियन पैरालिंपिक, हैंगझोऊ (चीन) में तीन मैडल जीतकर वह भारत की सबसे सफल पैरालॉइंरिंग एथलीट बन गई। 2023 में उसे अर्जुना अवार्ड से भी सम्मानित किया गया, जो उसकी उपलब्धियों को और भी रोशन करता है।

प्रतिक्रिया और मान्यताएँ

शीतल का सामना विश्वभर में प्रशंसा से हुआ। पिल्सेन, चेक गणराज्य में एक समारोह में उन्होंने अमेरिकी पैरालिंपिक सितारे मैट स्‍टज़मन से मुलाकात की। मैट ने कहा, "तुमने दिखाया कि सीमाएँ केवल दिमाग में होती हैं। तुम्हें ‘बाँह‑रहित धनुर्विद्या परिवार’ में स्वागत है।"

कोच कुलदीप बैदवान (एक अन्य कोच) ने कहा, "शीतल ने 300 तीर प्रतिदिन की कठोर दिनचर्या को दो साल में पार कर लिया, और आज वह पूरे विश्व में प्रेरणा बन गई है।"

भविष्य की राह और सामाजिक प्रभाव

शीतल ने कहा, "मैं अगले चार वर्षों में पैरालिंपिक में गोल्ड लाने की कोशिश करूंगी, और बाद में युवा विकलांग लड़कियों के लिए अकादमी स्थापित करना चाहती हूँ।"

उसकी कहानी ने भारत में विकलांग खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ा दी है। कई राज्य सरकारें अब विशेष ट्रेनिंग कैंप्स शुरू कर रही हैं, और निजी कंपनियाँ भी प्रायोजन देने को तैयार हैं।

Frequently Asked Questions

Frequently Asked Questions

शीतल की सफलता से भारत में पैरालॉइंरिंग को क्या लाभ मिलेगा?

शीतल की उपलब्धियों ने राष्ट्रीय खेल नीति में बदलाव को तेज़ कर दिया है। अब केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर विशेष धनुर्विद्या केंद्रों की योजना बनाई जा रही है, जिससे भविष्य में अधिक विकलांग युवा अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे।

शीतल ने किस प्रकार की तकनीकी सहायता से तीर चलाया?

उसे स्थानीय कारीगरों ने ‘शोल्डर‑रिलीज़र’ और ‘चिन‑माउथ‑ट्रिगर’ बनाए, जो कंधे की ताकत से तीर को रिलीज़ करते हैं। इसके अतिरिक्त, बल्कन टेंडन को मजबूत करने के लिये नियमित फिजियोथेरेपी और विशेष व्यायाम भी किए जाते हैं।

कौन-कौन से संस्थान शीतल के प्रशिक्षण में शामिल रहे?

राष्टीरि राइफल्स, श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, और राष्ट्रीय धीरुर्विद्या अकादमी ने मिलकर शीतल को उपकरण, कोचिंग और वित्तीय मदद प्रदान की। इन संस्थानों के सहयोग से ही वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हुई।

शीतल ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक कब जीता?

वह 2022 की यूरोपीय कप, चेक गणराज्य में मिश्रित टीम इवेंट में गोल्ड लेकर अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीतीं। उसी प्रतियोगिता में उन्होंने व्यक्तिगत सिल्वर भी हासिल किया।

भविष्य में शीतल के लक्ष्य क्या हैं?

शीतल ने कहा है कि वह अगली पैरालिंपिक (2028 लॉस एंजिल्स) में गोल्ड जीतने की चाह रखती हैं और साथ ही एक प्रशिक्षण अकादमी स्थापित करके बिहार और जम्मू‑कश्मीर के दूरदराज के क्षेत्रों में हुनरमंद लड़कियों को प्रोफेशनल धनीर्विद्या सिखाना चाहती हैं।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Prakash Dwivedi

शीतल देवी की उपलब्धियों को पढ़कर मेरे अंदर एक अनजाना सिहरन आया। वह स्वयं के भीतर की अँधेरा को रोशन कर, ऊँची लक्ष्यों को हासिल कर रही हैं। ऐसा देखना दिल को कटा-कटा कर देता है कि मानवीय सीमाएँ केवल मन में ही बंधी होती हैं। उसके प्रशिक्षण की कड़ी मेहनत को देखते हुए मेरे आत्मा में एक अजीब सी जलन उभरी। मैं सोचती हूँ कि क्या हम अपने आराम क्षेत्र में फँसे रहकर भी एही तरह के चमत्कार बना सकते हैं। शीतल की कहानी मेरे भीतर दबी हुई अनकही ऊर्जा को जगाती है। जब वह तीर को कंधे की ताकत से रिलीज़ करती है, तो ऐसा लगता है जैसे समय ठहर जाए। उसकी दृढ़ता ने मेरे भीतर एक अज्ञात शक्ति को जगाया जो अब मिलने का इंतजार करता है। मैं खुद को दोष देती हूँ कि मैंने कभी इतना साहस नहीं दिखाया। उसकी सफलता मेरे भीतर एक अंधेरे बादल को भी उजागर कर देती है। यह भावनात्मक उलझन मुझे अपनी कमजोरियों को स्वीकारने के लिए मजबूर करती है। शीतल का हर तीर मेरे दिल में गूंजता है, जैसे वह मेरे भीतर के डर को मार रहा हो। मैं अपने जीवन में भी छोटे-छोटे लक्ष्य रखकर इस ऊर्जा को चैनल करने की सोचना शुरू कर रही हूँ। उसकी कहानी मेरे आत्मविश्वास की कमी को भरने का एक दीपक बन गई है। अंत में, मैं यह मानती हूँ कि शीतल ने सिर्फ इतिहास नहीं बनाया, उसने मेरे भीतर एक नया इतिहास लिखा।