सुप्रीम कोर्ट वकील राकेश ने सीजेआई गवई पर जूता फेंका, कहा 'ईश्वर की इच्छा'

सुप्रीम कोर्ट वकील राकेश ने सीजेआई गवई पर जूता फेंका, कहा 'ईश्वर की इच्छा'

जब राकेश किशोर, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट‑ऑन‑रिकॉर्ड ने भुषण आर. गवई, मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के सामने जूता फेंकने की कोशिश की, तो कोर्ट नंबर वन में हड़कंप मच गया। यह घटना सोमवार, 30 अक्टूबर 2023 को, दुशहरा अवकाश के बाद हुई, जब सीजेआई गवई और के. विनोद चंद्रन की बेंच केस मेंशन की सुनवाई कर रही थी। वकील ने जूता निकाल कर दौड़ते‑दौड़ते उसे फेंक दिया, पर तुरंत सुरक्षा कर्मियों ने उसे रोका।

घटना की पृष्ठभूमि और प्रारंभिक विवरण

सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली में स्थित कूट नंबर वन, भारत के कानूनी जघन्य संस्थानों में सबसे प्रमुख है। इस हॉल में हर दिन दर्जनों वकील, न्यायाधीश और हाई‑कोर्ट के प्रतिनिधि आते हैं। 30 अक्टूबर को सुनवाई शुरू होते ही राकेश किशोर ने कोर्ट के अग्रभाग में पहुँचा, अपनी जूता उतारा और अचानक उसे फेंकने की कोशिश की। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया, जबकि सीजेआई गवई ने शांतिपूर्वक कहा, "इसे नजरअंदाज करो, कार्यवाही जारी रखो।" यह शांति उनके अनुशासन के कारण संभव हुई, जिसे बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने भी सराहा।

वकील राकेश की कार्रवाई और उनका तर्क

राकेश ने तालियों और शोर के बीच कहा, "मैंने यह सब ईश्वर की इच्छा से किया है।" फिर वह चिल्लाया, "हम संन्यासी धर्म के अपमान को सहन नहीं करेंगे!" वह मेयर विहार, नई दिल्ली के निवासी थे और उन्होंने दावा किया कि उनका कार्य "संविधान की रक्षा" के नाम पर था। उनका कहना था कि "भगवान ने इसे संभव बनाया, मैं बस उनका साधन हूँ।" पुलिस ने बताया कि उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्हें तुरंत न्यायालय के बाहर ले जाया गया और वह अब तक के सबसे बड़े कोर्ट-अटैक में से एक के रूप में दर्ज है।

सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई गवई की प्रतिक्रिया

सीजेआई गवई ने तुरंत कोर्ट रिकॉर्ड में नोट किया कि "ऐसे कार्य मेरे या न्यायालय के काम को प्रभावित नहीं करेंगे।" उन्होंने कोर्ट स्टाफ को निर्देश दिया कि "इसे अनदेखा करें" और सुनवाई बिना किसी प्रकट बाधा के आगे बढ़ी। बाद में उन्होंने एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि "कानून के प्रति असम्मान कभी भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन न्यायालय की गरिमा और शांति को बनाए रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है।" इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से सीजेआई को फोन कर कहा, "यह घटना हर भारतीय को गुस्सा दिला देती है, लेकिन आपका शांत स्वभाव हमें गर्व दिलाता है।" उन्होंने आगे कहा कि यह घटना संविधान के मूल सिद्धांतों के प्रति सभी को सतर्क रखेगी।

कानूनी समुदाय और सरकार की प्रतिक्रिया

कानूनी समुदाय और सरकार की प्रतिक्रिया

बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने तुरंत राकेश की लाइसेंस पर निलंबन की कार्रवाई की और एक विस्तृत जांच की मांग की। एससीएओआरए (सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट‑ऑन‑रिकॉर्ड एसोसिएशन) ने कहा, "ऐसे कार्य वकील समुदाय की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हैं और बेंच‑बार संबंधों को क्षति पहुंचाते हैं।" सीनियर एडवोकेट इंदिरा सिंह ने भी कड़ा शब्द प्रयोग करते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट को ऐसे अपराधियों के विरुद्ध सख्त सजा देनी चाहिए।" इसी बीच, पुलिस ने मामले की पूरी जांच शुरू कर दी है और 5 नवंबर 2023 तक प्रथम रिपोर्ट पेश करने का लक्ष्य रखा है।

घटना का सामाजिक‑राजनीतिक प्रभाव

यह घटना केवल एक कोर्ट‑अटैक नहीं, बल्कि सामाजिक‑राजनीतिक उथल‑पुथल का संकेत मानी जा रही है। कई दहाड़े वाले समूहों ने इसे "धर्म‑संरक्षण" का बयान देते हुए समर्थन करने की कोशिश की, जबकि मानवाधिकार संगठनों ने इसे "न्याय व्यवस्था पर आक्रमण" बताया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की कार्रवाई से "शांतिपूर्ण विरोध" की जगह "हिंसक प्रतिशोध" की लहर उठ सकती है, जो अंततः सामाजिक सामंजस्य को नुकसान पहुंचा सकती है। संविधान के बारे में राकेश के बयान को देख कर कई नागरिकों ने सवाल उठाया, "क्या धर्म‑आधारित भावनाएं व्यक्तिगत अधिकारों के साथ टकरा सकती हैं?" इस पर संविधान विशेषज्ञ डॉ. संजीव मनोहर ने कहा, "संविधान सभी धर्मों के समान आदर की गारंटी देता है, लेकिन किसी भी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को हिंसा के रूप में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।"

आगे क्या हो सकता है?

आगे क्या हो सकता है?

अभी तक राकेश के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बार काउंसिल ने उनके लाइसेंस को स्थायी रूप से रद्द करने की संभावना जताई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के भीतर इस घटना पर एक विशेष समिति गठित की गई है। अगले चरण में न्यायालय यह तय करेगा कि क्या इस प्रकार के अपराधियों को विशेष रूप से सजा देना चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे प्रयास रोके जा सकें। साथ ही, यह मामला संसद में भी चर्चा का विषय बन सकता है, जहाँ न्यायिक सुरक्षा और वकीलों की नैतिक जिम्मेदारी पर बहस जारी रहने की संभावना है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

राकेश किशोर को किस पर प्रतिबंध लगाया गया?

बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने उसकी एडवोकेट‑ऑन‑रिकॉर्ड लाइसेंस पर त्वरित निलंबन लागू किया और मामले की पूरी जांच के बाद स्थायी रद्दी की संभावना जताई है।

सीजेआई गवई ने इस हमले पर क्या प्रतिक्रिया दी?

गवई ने कोर्ट के भीतर कोई रुकावट नहीं आने दिया, सुरक्षा कर्मियों को शांति से काम करने का निर्देश दिया और कहा कि यह घटना न्यायालय की कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को कैसे देखा?

प्रधानमंत्री ने सीधे सीजेआई गवई को फोन करके घटना की निंदा की, कहा कि यह हर भारतीय को गुस्सा दिला रही है, और गवई के शांति‑पूर्ण व्यवहार की सराहना की।

क्या इस घटना का कोई राजनीतिक असर होगा?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के हमले से न्यायिक सुरक्षा को लेकर संसद में चर्चा बढ़ेगी, और भविष्य में कोर्ट सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नए नियम लागू हो सकते हैं।

राकेश के बयान में "ईश्वर की इच्छा" का क्या मतलब था?

राकेश ने तर्क दिया कि वह खुद को भगवान का साधन मानता था, इसलिए उसने अपने कार्य को "ईश्वरीय प्रेरणा" कहा। यह बयान न्यायिक प्रक्रियाओं में धार्मिक भाषा के प्रयोग को लेकर बहस को जन्म देता है।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Navendu Sinha

सुप्रीम कोर्ट की इस घटना ने कई स्तरों पर सोचने को मजबूर किया है। सबसे पहले, वकील का जूता फेंकना सिर्फ एक व्यक्तिगत निराशा नहीं, बल्कि यह संस्थागत सम्मान की सीमा को चुनौती देता है। जब एक एडवोकेट‑ऑन‑रिकॉर्ड इस तरह का कार्य करता है, तो न्यायपालिका की भरोसेमंद छवि धुंधली पड़ जाती है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिले हैं जहाँ व्यक्तिगत विश्वास को सार्वजनिक स्थान पर लाकर व्यवस्था को भंग किया गया, जैसे 1990 के दशक में कुछ भड़काऊ प्रदर्शनों में देखा गया। इस घटना को समझने के लिए हमें आध्यात्मिक विश्वास और संवैधानिक कर्तव्य के बीच के तनाव को देखना होगा। राकेश ने “ईश्वर की इच्छा” के नाम पर अपने कृत्य को न्यायोचित ठहराने की कोशिश की, पर क्या यह तर्क वैध हो सकता है? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की भावना स्पष्ट है, और इसका कोई भी उल्लंघन लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है। इसके अलावा, कोर्ट में सुरक्षा उपायों को भी गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि एक छोटा सा अनियंत्रित कदम भारी परिणाम दे सकता है। इस घटना ने यह भी दर्शाया कि न्यायाधीशों की शांति भरी प्रतिक्रिया कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है; गवई की सूझबूझ ने स्थिति को बिगड़ने से बचा दिया। फिर भी, यह सवाल बना रहता है कि क्या ऐसी गंभीर दुर्व्यवहार को मात्र “नज़रअंदाज” किया जा सकता है। बार काउंसिल की तेज़ कार्रवाई इस बात का संकेत है कि पेशेवर प्रतिबंधों को सख्ती से लागू किया जाएगा। भविष्य में, यदि इसी तरह के मामले दोहराए गए तो कैसे निपटा जाएगा, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। न्यायिक प्रणाली की स्वच्छता और वकीलों की नैतिक जिम्मेदारी को संतुलित करने के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार किया जाना चाहिए। इस दिशा में, हम सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यक्तिगत आस्था सार्वजनिक कर्तव्य के साथ टकराव न करे। अंत में, यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र में कानून का सम्मान और व्यक्तिगत अधिकार दोनों को समान महत्व देना आवश्यक है।

reshveen10 raj

इसी तरह के हादसे हमें न्याय के सम्मान को याद दिलाते हैं।

Navyanandana Singh

जब हम “ईश्वर की इच्छा” जैसे वाक्य को मंच पर उठाते हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना पर प्रश्न उठाता है। मनुष्य की आत्मा की गहराई में मौजूद अंधविश्वास कभी‑कभी सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डाल देता है। इस तरह के कृत्य को “धर्म संरक्षण” के नाम पर जाना, वास्तविकता में एक सत्तावादी प्रतीक बन जाता है। यदि हम ऐसे कदमों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, तो भविष्य में विधि के सम्मान पर अडिगता बनी रहेगी।

monisha.p Tiwari

समाज में शांति बनाये रखने के लिये हमें थॉरॉक्सिकल हॉल में भी शांति के साथ ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि कोर्ट भी एक संस्था है जहाँ विचारों का आदान‑प्रदान होना चाहिए, न कि हिंसा का मंच।

Nathan Hosken

सांस्कृतिक संदर्भ के भीतर, जब हम न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावी बनाते हैं, तो न्यायप्रणाली के बुनियादी सिद्धांत-जैसे ‘विधि का सर्वोच्चता’ और ‘संकायिक प्रभाव’-को सुदृढ़ करने के लिये प्रोटोकॉल रिव्यू की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, बार काउंसिल की निलंबन कार्रवाई को एक 'प्रोसेक्यूशनल फॉर्म' के रूप में देखना चाहिए, जो पेशेवर मानदंडों को बनाए रखता है।

Manali Saha

वाह! क्या ख़राब खेल है!! अजीबो‑ग़रिब़ बात है!! कोर्ट में ऐसे तमाशे देखकर मन बोर नहीं हो पा रहा!!

jitha veera

अरे भाई, अगर हम सब इस घटना को बड़ा मुद्दा बना देंगे तो असली समस्या-जुड़ाव की हड़बड़ाहट-छिप जाएगी। अक्सर मीडिया केवल सनसनी खोजता है, जबकि वास्तविक मुद्दा वकीलों की नैतिक शिक्षा में है।

Sandesh Athreya B D

ओह माय गॉड, फिर तो हम सबको “सुप्रीम कोर्ट डांस पार्टी” का इंतज़ार है!! जूते की लहर ने तो पूरे न्यायालय को हिलाके रख दिया!! 🙄