भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम और सरकारी नीति
भारत सरकार ने हाल ही में पेट्रोल और डीजल पर ₹2 प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया है, जो 8 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगा। इस वृद्धि के बाद पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क ₹13 प्रति लीटर और डीजल पर ₹10 प्रति लीटर हो गया है। हालांकि, इस वृद्धि के बावजूद खुदरा कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों के गिरावट के कारण इस बढ़े हुए शुल्क को समायोजित करेंगी।
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस नीति के बारे में बताया कि, भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों और विपक्ष-शासित राज्यों के बीच दामों में ₹10-12 प्रति लीटर का अंतर है। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने यह नीति अंतरराष्ट्रीय कीमतों के उतार-चढ़ाव से जनता को बचाने के लिए विकसित की है। यह कदम पिछले रणनीतियों के साथ मेल खाता है, जैसे कि 2014-15 और 2020 के तेल कीमत गिरावट के दौरान शुल्क में वृद्धि।
आर्थिक लाभ और प्रभाव
यह कदम सरकार के लिए वार्षिक ₹32,000 करोड़ की आय पैदा कर सकता है, जो LPG सब्सिडी के नुकसान को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है। हाल ही में LPG सिलेंडरों की कीमत में ₹50 की वृद्धि हुई, जिससे अब दिल्ली में 14.2 किलोग्राम रीफिल की कीमत ₹553 (उज्ज्वला योजना के तहत) और ₹853 (अन्य उपभोक्ताओं के लिए) हो गई है।
घोषणा के बाद राज्य द्वारा संचालित तेल कंपनियों के शेयर की कीमतों में 4% तक की वृद्धि देखी गई। इस वित्तीय नीति का मुख्य उद्देश्य सरकारी खजाने को मजबूत करना और ऊर्जा क्षेत्र में स्थिरता लाना है, जबकि आम जनता पर असर को न्यूनतम रखना है।
Ankit Intodia
पैसे की कीमत सिर्फ अंक नहीं, वो सामाजिक संतुलन का एक प्रतिबिंब है। सरकार का यह नया उत्पाद शुल्क नीति वित्तीय घाटे को पाटने का एक कदम है। लेकिन ऊर्जा की कीमत में बदलाब आम नागरिक के जीवन स्तर को सीधे प्रभावित करता है। अगर दाम स्थिर रखे तो ग्राहक भरोसा बनाए रखेंगे और बाजार में मांग भी संतुलित रहेगी। दूसरी ओर, सट्टा बाजार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए यह योजना जोखिम भरी लगती है। तकनीकी रूप से, पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त शुल्क से राजस्व में अनुमानित ₹32,000 करोड़ की बढ़ोतरी होगी। यह राशि LPG सब्सिडी के नुकसान को घटाने में सहायक हो सकती है। फिर भी, यह उपाय तभी सफल होगा जब कीमतों में कोई असंगत अंतर न रहे। विभिन्न राज्यों में कीमतों का अंतर स्थानीय राजनीति को जटिल बना देता है। इस नीति के तहत उपभोक्ताओं को मिलने वाला राहत तभी अर्थपूर्ण होगी जब कंपनियां वास्तविक मूल्य में कटौती करें। वैश्विक तेल कीमतें गिर रही हैं, इसलिए मार्केटिंग कंपनियां इस शुल्क को शोषित कर सकती हैं। इस पर नजर रखना जरूरी है कि कंपनियों का शेयर मूल्य बढ़ना वास्तविक लाभ है या काल्पनिक। यदि उपभोक्ता को बहुत कम बोझ पड़े तो यह योजना दीर्घकालीन स्थिरता देता है। लेकिन अगर कीमतें फिर से ऊपर चली जाएं तो राजस्व की आशा टूट जाएगी। अंत में, आर्थिक नीति को सामाजिक न्याय के साथ संतुलित करना ही सच्चा विकास दर्शाता है।