कनाडा ने भारतीय राजनायिकों को निष्कासित किया: सिख अलगाववादियों के खिलाफ हिंसा में सरकार की भागीदारी का आरोप

कनाडा और भारत के बीच राजनयिक विवाद का प्रारंभ
हाल ही में कनाडा और भारत के बीच जमी बर्फ अचानक पिघल गई है, जब कनाडा सरकार ने छह भारतीय राजनायिकों को निष्कासित कर दिया। इनमें उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा भी शामिल हैं। यह कदम उस जांच के परिणामस्वरूप उठाया गया है जिसने भारतीय सरकारी एजेंटों को कनाडा में सिख अलगाववादियों के खिलाफ अपराध में शामिल बताया है। इन आरोपों ने दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है।
कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने इस निष्कासन की घोषणा करते हुए कहा कि यह फैसला उन व्यक्तियों के खतरे के चलते लिया गया है जो भारतीय सरकार से संबंधित हैं। कनाडा सरकार का मानना है कि ये लोग देश के नागरिकों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
भारत सरकार का प्रतिकार और प्रतिक्रिया
कनाडा के इस कदम के उत्तर में, भारत ने भी अपने देश में छह कनाडाई राजनायिकों को निष्कासित कर दिया है। इनमें कार्यवाहक उच्चायुक्त स्टीवर्ट रॉस व्हीलर भी शामिल हैं। भारत ने इन आरोपों को 'बेतुका' करार दिया है और स्पष्ट किया है कि वे कनाडा द्वारा उनके अधिकारियों को बदले में हटा रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि यह सब राजनीतिक कारणों से भारत को बदनाम करने की सुनियोजित कोशिश है।
भारतीय सरकार ने अपने वक्तव्य में दावा किया कि उच्चायुक्त वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोप हास्यास्पद हैं और उन्हें तिरस्कार के योग्य बताया। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, कनाडा की ओर से भारत को बदनाम करने के लिए एक संगठित प्रयास किया जा रहा है।
आरसीएमपी और उनकी जांच
कैनेडा के रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने भारतीय सरकारी एजेंटों के खिलाफ कनाडा में अपराधों में शामिल होने के आरोपों की जाँच की है। पोस्ट के अनुसार, जब से सितंबर पिछले साल से इस प्रकृति के 'दर्जनों' अनुकूल और तात्कालिक खतरे रहे हैं।
RCMP के आयुक्त, माइक दुहेम ने कहा कि इस मुद्दे को भारतीय सरकार के साथ निपटाने के प्रयास सफल नहीं हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से खालिस्तान आंदोलन के सक्रिय सदस्यों को इन खतरों का सामना करना पड़ रहा है। यह आंदोलन सिख स्वतंत्रता का समर्थन करता है और इस वजह से वे भारतीय एजेंटों के निशाने पर हैं।
भारत-कनाडा रिश्तों पर प्रभाव और संभावित परिणाम
भारतीय और कनाडाई सरकारों के बीच इस तनाव से यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों देशों के संबंध एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। एक तरफ जहां कनाडा खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, वहीं भारत इसे अपनी संप्रभुता और सुरक्षा से जुड़ा मामला मानता है। भारत का आरोप है कि कनाडा उसकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर रहा है।
अभी इस मुद्दे का अंत निष्कर्ष निकालना मुश्किल है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, कनाडा और भारत दोनों ही इस परिस्थितियों का हल निकालने के लिए बातचीत के रास्ते फेरबदल कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक संबंध गहरे हैं और यह विवाद उनके दीर्घकालिक दोस्ती को प्रभावित कर सकता है।
भविष्य की दिशा
आने वाले समय में, दोनों देशों की सरकारों को एक समझौते पर पहुंचने की आवश्यकता होगी। दोनों ही एक दूसरे के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं और यह विवाद उनके आर्थिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।
इस विवाद ने न केवल राजनयिक क्षेत्र में बल्कि नागरिक सुरक्षा, मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में भी चर्चा की है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में यह स्थिति किस दिशा में जाती है और दोनों सरकारें इसे कैसे सुलझाती हैं।
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