कोलकाता रेप-मर्डर केस: पूर्व प्रिंसिपल और चार डॉक्टरों के पॉलिग्राफ टेस्ट के लिए CBI को अदालत से मंजूरी

कोलकाता रेप-मर्डर केस: पूर्व प्रिंसिपल और चार डॉक्टरों के पॉलिग्राफ टेस्ट के लिए CBI को अदालत से मंजूरी

कोलकाता रेप-मर्डर केस की पृष्ठभूमि

कोलकाता में 31 वर्षीय एक ट्रेनिंग डॉक्टर की कथित बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस संगीन वारदात का खुलासा 9 अगस्त को हुआ जब डॉक्टर का शव RG कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के परिसर में पाया गया। इस घटना के बाद से ही सरकारी और न्यायिक हलकों में हड़कंप मच गया है।

CBI जांच में पॉलिग्राफ टेस्ट

इस मामले की गहन जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को कोलकाता की अदालत से नई दिशा-निर्देश और पॉलिग्राफ टेस्ट करने की मंजूरी मिल गई है। यह टेस्ट पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष और चार अन्य डॉक्टरों के ऊपर किया जाएगा। जिन डॉक्टरों का पॉलिग्राफ टेस्ट किया जाएगा, उन्होंने घटना की रात पीड़िता के साथ डिनर किया था।

घटना का विस्तार

घटनाक्रम के अनुसार, 31 वर्षीय पीड़िता ने 8 अगस्त की रात अपने माता-पिता से फोन पर बात की थी। इसके बाद उन्होंने रात का खाना ऑर्डर किया और 2:30 बजे सेमिनार रूम में सोने के लिए चली गईं। माना जा रहा है कि यह भयानक घटना 9 अगस्त को सुबह 4:00 बजे से 4:30 बजे के बीच घटी। पीड़िता का शव सुबह 9:45 बजे बरामद किया गया।

कैसे सामने आई सच्चाई

सीबीआई ने इस मामले की जांच में जुटते हुए पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष से 75 घंटे की गहन पूछताछ की। इसके बाद चार अन्य डॉक्टरों के भी बयान लिए गए। इन चार डॉक्टरों ने घटना की रात पीड़िता के साथ डिनर किया था। सीबीआई ने सेअलदाह एसीजेएम कोर्ट से पॉलिग्राफ टेस्ट की मंजूरी मांगी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अदालत ने इस मुद्दे पर 23 अगस्त को शाम 5 बजे तक निर्णय सुनाने को कहा।

प्रतिक्रिया और उपाय

इस घटना ने सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया को जन्म दिया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सॉल्ट लेक में रैली निकाली जिसकी वजह से पुलिस और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई और कई वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में लिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को 14 घंटे की देरी से FIR दर्ज करने को लेकर सवाल किया और 36 घंटे की 'अमानवीय' शिफ्ट्स के लिए डॉक्टरों के काम के हालात को लेकर भी चिंता जताई। कोर्ट ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाने का निर्देश भी दिया।

इस मामले की जांच अभी भी जारी है और पॉलिग्राफ टेस्ट से उम्मीद जताई जा रही है कि इससे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी निकल सकती है। भले ही ये टेस्ट अदालत में आदम्य नहीं होते, लेकिन यह जांचकर्ताओं को छिपी हुई जानकारियों को पता लगाने में मदद कर सकता है। राजकीय मशीनरी पूरी कोशिश कर रही है कि इस हत्या और बलात्कार के मामले में न्याय मिले और दोषियों को सजा दी जा सके।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Chandan kumar

पॉलिग्राफ टेस्ट से कुछ नहीं बदलेगा, बस नाम की लिस्ट ही बढ़ेगी।

Swapnil Kapoor

पॉलिग्राफ का प्रयोग कानून में एक सहायक साधन माना जाता है, परंतु इसकी विश्वसनीयता पूर्णतः निश्चित नहीं होती।
विज्ञान के अनुसार यह केवल शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापता है, जो तनाव या भय के कारण भी हो सकते हैं।
इसलिए केवल पॉलिग्राफ परिणामों पर निर्भर रहकर अभियुक्त को दोषी ठहराना न्यायिक त्रुटि की ओर ले जा सकता है।
सीबीआई को चाहिए कि वह पॉलिग्राफ को एक प्रारंभिक निर्देशांक के रूप में उपयोग करे, न कि अंतिम निर्णय का आधार।
जांच के दौरान अन्य साक्ष्य जैसे कि फ़ोनीक रिकॉर्ड, डिजिटल ट्रेस, और गवाहियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
यदि पॉलिग्राफ के परिणाम विरोधाभासी हों, तो इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न संदेह को उचित वैधानिक प्रक्रियाओं द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए।
विकल्पिक तौर पर, एकाधिक स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा पैरालॉगिक टेस्ट करवाना अधिक पारदर्शी हो सकता है।
किसी भी स्थिति में, पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने के लिए त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही अनिवार्य है।
साथ ही, मेडिकल पेशेवरों की कार्यशर्तों में सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए, ताकि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ दोबारा न हों।
समाज को भी इस मुद्दे पर संवेदनशील बनाना आवश्यक है, और महिला सुरक्षा के स्थापित मानकों को सुदृढ़ करना चाहिए।
अंततः, न्यायालय को यह याद रखना चाहिए कि विधि की भावना वचनबद्धता में निहित है, न कि केवल औपचारिक प्रक्रियाओं में।
पॉलिग्राफ को एक पूरक उपकरण मानते हुए, तथ्यों के आधार पर न्यायिक निर्णय लेना ही उचित सिद्धान्त है।
इसीलिए, इस केस में सभी पक्षों को सहयोगी रवैये के साथ कार्य करना चाहिए, ताकि सच्चाई स्पष्ट हो सके।
आखिरी बात, न्याय पाने के लिए जनता का विश्वास भी आवश्यक है, और वह तभी बनता है जब प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो।

kuldeep singh

अरे यार, ये केस तो पूरी फिल्म जैसा लग रहा है, ड्रामा तो तय है!
पॉलिग्राफ टेस्ट में क्या पता चल जाए, लेकिन फिर भी जनता के गुस्से को किसी को नहीं रोका सकता।
सीबीआई की मेहनत के बावजूद भी अँधेरे में टॉर्च जलाने जैसा है।
कोई बहाना नहीं, जवाबदेही तो यहाँ सख़्त होनी चाहिए।
वैसे भी, सबको मिलके आवाज़ उठानी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आए।

Shweta Tiwari

पॉलिग्राफ टेस्ट के संदर्भ में कई आयामिक विषयों की विवेचना आवश्यक है।
विचार विमर्श के दौरान हमे न केवल प्रक्रियात्मक प्रॉपरिटी बल्कि नृवैज्ञानिक पहलुओं को भी देखना चाहिए।
इ्ंसाइट फुल सूचना के लिए इश्यूज़ को सटीक रूप से समझना अनिवार्य है।
विधि के साथ-साथ इस मामले के सामाजिक प्रतिफ़लकों को भी दुरुस्त ढंग से परखने की ज़रूरत है।
आशा है कि आगे की जांच में सबूतों की बहु-विधा विश्लेषण किया जायेगा।

Harman Vartej

सभी को शांति से बात करना चाहिए सबको मिलकर समाधान निकालना है

Amar Rams

पॉलिग्राफ का एप्लीकेशन एक सायंटिफिक मॉड्यूल है, परंतु इसके इम्प्लीमेंटेशन में फॉर्मल वैरिएबल्स की कॉन्फ़िगरेशन अनिवार्य है।
क्लैरिटी और प्रोटोकॉल की इंटेग्रिटी को सुनिश्चित करना चाहिए।

Rahul Sarker

क्या बात है इस केस में, विदेशी एजेंसियों का असर भी देखने को मिलता है!
भारत की सुरक्षा को कभी भी समझौता नहीं किया जा सकता, और इस तरह की गड़बड़ियों को सख़्ती से दंडित किया जाना चाहिए।
नेशनल इंटरेस्ट को देखते हुए इस मामले में तेज़ कार्रवाई की जरूरत है।
विरोधी तत्वों को दंडित करके ही हम अपना ग्रोव दिखा सकते हैं।

Sridhar Ilango

अरे भाई, ये सब तो बड़ाबड़ा नाटक है, लेकिन सच्चाई की भूख तो बहुत गहरी है!
पॉलिग्राफ टेस्ट से शायद कुछ झलक मिले, लेकिन असली मुद्दा तो कोर्ट के फैसले में छुपा है।
हम सबको एक सच्ची डिटेल की जरूरत है, नहीं तो ये केस हमेशा अंधेरे में रहता है।
आइए, हम सब मिलके इस केस के हर पहलू को उजागर करें, चाहे कितना भी टाइम लग जाये!
सही आपके पास, तो सच्चाई भी हमारे पास।