लड़की बहिन योजना पर महाराष्ट्र सरकार की सफाई: क्या दूसरी योजनाएं बंद होंगी?

लड़की बहिन योजना पर महाराष्ट्र सरकार की सफाई: क्या दूसरी योजनाएं बंद होंगी?

सरकार ने क्या कहा: दूसरी योजनाएं बंद नहीं होंगी

महाराष्ट्र में नई लड़की बहिन योजना के एलान के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठा—क्या इसके लिए पैसे जुटाने के चक्कर में दूसरी सरकारी योजनाएं बंद होंगी? सरकार ने साफ कर दिया है कि ऐसी आशंका बेबुनियाद है। छात्रवृत्तियां, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, किसानों से जुड़ी मदद, स्वास्थ्य बीमा जैसी चल रही योजनाएं जारी रहेंगी। फोकस नई योजना को जोड़ने के साथ-साथ मौजूदा योजनाओं को सुव्यवस्थित करने पर रहेगा।

वित्त और महिला-बाल विकास विभाग के स्तर पर जो संकेत मिले हैं, उनके मुताबिक रणनीति तीन हिस्सों में है—पहला, डुप्लीकेट और अपात्र लाभार्थियों की सफाई; दूसरा, सीधे बैंक खाते में भुगतान (DBT) के जरिए लीकेज रोकना; और तीसरा, विभागों के बीच ओवरलैप कम करना। यानी जहां एक जैसी मदद कई योजनाओं से मिल रही है, वहां नियम स्पष्ट कर एक ही चैनल से लाभ दिया जाएगा।

सरकार का कहना है कि यह कदम योजनाओं को बंद करने के लिए नहीं, बल्कि असर बढ़ाने के लिए है। जिलों में सामाजिक ऑडिट, आधार-बेस्ड सत्यापन और समयबद्ध भुगतान की मॉनिटरिंग जैसे उपाय साथ-साथ चलेंगे। इससे पुराने लाभ भी चलते रहेंगे और नई योजना का रोलआउट भी बिना झटके के हो सकेगा।

फंडिंग, असर और प्रक्रिया: अब आगे क्या

फंडिंग, असर और प्रक्रिया: अब आगे क्या

सबसे बड़ा सवाल फंडिंग का है। राज्य का तर्क है कि संसाधन कई स्रोतों से आएंगे—गैर-जरूरी प्रशासनिक खर्च में कटौती, टैक्स कलेक्शन में सुधार, विभागों के बजट में पुनर्संतुलन, और जरूरत पड़ी तो साल के बीच में पूरक मांगें। विज्ञापन, यात्रा और कार्यक्रमों जैसे मदों में सीमा तय करने की तैयारी भी है ताकि सामाजिक क्षेत्र पर बोझ न पड़े।

नीतिगत जोखिम क्या हैं? अर्थशास्त्रियों का कहना है कि नई मासिक मदद स्थायी राजकोषीय वचनबद्धता बनाती है, इसलिए पूंजीगत खर्च (सड़क, सिंचाई, अस्पताल) पर नजर रखना जरूरी होगा। सरकार कहती है कि कैपिटल आउटले को ‘रिंग-फेंस’ किया जाएगा—यानी बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट प्रभावित न हों। असल परीक्षा तिमाही-तिमाही नकदी प्रबंधन और समय पर किश्त जारी रखने में होगी।

योजना का खाका सरल रखा गया है—पात्र महिलाओं को हर महीने सहायता, भुगतान सीधे बैंक खाते में, और सत्यापन डिजिटल। जिलों में कैंप, वार्ड और ग्राम स्तर पर पात्रता जांच, और सहायता केंद्रों के जरिए फॉर्म भरने की सुविधा दी जाएगी। पहले चरण में सीमित जिलों से शुरुआत और फिर चरणबद्ध विस्तार का रास्ता चुना जा सकता है ताकि सिस्टम की खामियां शुरुआती दौर में ही पकड़ी जाएं।

कौन पात्र होगा? आधिकारिक दिशा-निर्देश आयु, आय और पारिवारिक स्थिति जैसे मानकों पर आधारित होंगे। लक्ष्य यह है कि सबसे जरूरतमंद महिलाएं—ग्रामीण और शहरी, दोनों—बेहतर ढंग से कवर हों। आंगनवाड़ी नेटवर्क, स्वयं-सहायता समूह और नगरपालिकाओं के साथ मिलकर आउटरीच बढ़ाने की योजना है ताकि कोई भी पात्र महिला छूट न जाए।

लाभार्थियों के लिए जरूरी बातें—कुछ काम अभी से कर लें:

  • आधार, बैंक पासबुक और मोबाइल नंबर सक्रिय रखें; बैंक खाते से मोबाइल लिंक जरूर हो।
  • राज्य निवास, वैवाहिक और आय प्रमाण जैसे दस्तावेज तैयार रखें; जहां जरूरत न हो, वहां मांगा भी नहीं जाएगा।
  • फॉर्म भरते समय नाम, जन्मतिथि और बैंक विवरण में गलती न हो—DBT अटकने की सबसे बड़ी वजह यही होती है।
  • मध्यस्थों और दलालों से बचें; पंजीकरण और भुगतान सरकारी प्रक्रिया है, अलग से कोई शुल्क नहीं।

राजनीतिक बहस भी गर्म है। विपक्ष इसे चुनावी वादा कहकर वित्तीय बोझ पर सवाल उठा रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे ‘महिला सशक्तिकरण’ का बड़ा कदम बता रहा है। दोनों पक्ष इस पर जरूर सहमत दिखते हैं कि सीधे नकद सहायता से स्थानीय अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है—मुद्दा यह है कि यह किस हद तक टिकाऊ है और दूसरी प्राथमिकताओं को बिना नुकसान पहुंचाए कैसे संतुलन बने।

जमीनी अमल पर नज़र रखनी होगी—पहली-दूसरी किश्त समय पर आती है या नहीं, शिकायतों का निपटारा कितनी जल्दी होता है, और सूची में गलत ढंग से कटे या जुड़े नाम कितनी तेजी से ठीक होते हैं। सरकार ने संकेत दिया है कि पहली किश्त के बाद डेटा शुद्धिकरण और अपील की विंडो खोली जाएगी ताकि सिस्टम भरोसेमंद बने और लोगों का विश्वास कायम रहे।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।