Pahalgam Attack: ओवैसी ने अफरीदी को जमकर लताड़ा, पाकिस्तान को FATF ग्रे लिस्ट में डालने की मांग तेज

Pahalgam Attack: ओवैसी ने अफरीदी को जमकर लताड़ा, पाकिस्तान को FATF ग्रे लिस्ट में डालने की मांग तेज

Pahalgam हमला पर शाहिद अफरीदी के बयान से उठा सियासी तूफान

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के सबसे खूबसूरत इलाकों में से एक बाइसरान मीडोज के पास Pahalgam हमला हुआ। 26 मासूम लोगों की जान चली गई, जिनमें नेपाल के एक नागरिक की भी मौत हुई। इस हमले के फौरन बाद, पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने भारत की सुरक्षा एजेंसियों पर ही उंगलियां उठा दीं। उनका दावा था कि भारत खुद आतंकवाद करवाता है, फिर पाकिस्तान को कुसूरवार ठहराता है। ये बयान सुनकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का पारा चढ़ना लाजिमी था।

ओवैसी ने शाहिद अफरीदी को 'जोकर' कहते हुए तंज कसा कि पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में दोबारा डाला जाए, क्योंकि वहां से आतंक की फंडिंग लगातार जारी है। ओवैसी ने ये भी जोड़ा कि पाकिस्तान तो उसी ISIS की तरह बर्ताव करता है- बेगुनाहों को निशाना बनाकर। उनका कहना था- "जब बाइसरान में सैलानियों-पहाड़ी मजदूरों की हत्या कर दी गई, वो दहशतगर्दी नहीं तो और क्या है? यह पाकिस्तान की प्रायोजित आतंक की साजिश है।"

FATF ग्रे लिस्ट की मांग और पाकिस्तान की किरकिरी

ओवैसी ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि भारत को अपना बचाव करने और आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने का हक है- चाहे वो राष्ट्रसंघ का अनुच्छेद 51 हो या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 355, देश की सुरक्षा के लिए सब जायज है। ओवैसी ने ये भी पूछा कि FATF ने पाकिस्तान को कुछ समय गंभीर चेतावनी दी थी, फिर भी आतंकी घटनाएं क्यों नहीं थमीं?

इस विवाद में एक और नाम जुड़ गया—पाकिस्तान के ही पूर्व क्रिकेटर डेनिश कनेरिया। उन्होंने अफरीदी के बयानों को 'चरमपंथी' करार दिया और साफ कहा कि भारत जैसे बड़े देश की मीडिया को ऐसे लोगों को मंच नहीं देना चाहिए। ये बात दिखाती है कि खुद पाकिस्तान के लोग भी अब अफरीदी की सोच से असहज हैं।

  • Pahalgam हमला 2019 के पुलवामा अटैक के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला बना है।
  • इससे दोनों देशों के बीच तनाव फिर बढ़ गया है।
  • भारतीय सुरक्षा एजेंसियां हमले की जांच कर रही हैं और पड़ोसी देश की संलिप्तता की ओर इशारे सामने आ रहे हैं।

कश्मीर में टूरिज्म सीजन के बीच हुए इस हमले ने न सिर्फ स्थानीय लोगों में बल्कि देशभर में चिंता फैला दी है। इसी बहाने फिर एक बार ओवैसी, अफरीदी और FATF जैसे मुद्दे सुर्खियों में हैं। भारत में ये मांग जोर पकड़ती जा रही है कि पाकिस्तान को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए ताकि ऐसे हमले दोहराए न जा सकें।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

akshay sharma

अरे यार, अफरीदी की ये हरकत तो सच्ची में दिमाग़ के पन्ने उलट देती है! उसने भारत की सुरक्षा एजेंसियों को एकदम ढीला-ढाला पकड़ा, जैसे कोई जूता फिर से बांधने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी ने बस नहीं चुप रहे, उन्होंने सीधे‑सीधे उस पर 'जोकर' के चुटकुले मार डाले। यह दिखाता है कि राजनीतिक उथल‑पुथल में कितनी तेज़ी से शब्दों की तलवार चलती है। आखिरकार, जब राष्ट्रीय सुरक्षा की बात होती है तो कोई भी व्यक्ति मज़ाक नहीं बना सकता।

Anand mishra

पहलगाम के इस दर्दनाक हमले को लेकर कई बिंदुओं को समझना आवश्यक है, क्योंकि इस तरह की घटनाएँ सिर्फ एक क्षणिक बवाल नहीं होतीं बल्कि गहरी जड़ें लेकर आती हैं।
पहला, पाकिस्तान के भीतर मौजूद अति‑उत्साही तत्वों का फंडिंग नेटवर्क अत्यधिक प्रसारित हो चुका है, और इसे रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की कड़ी निगरानी आवश्यक है।
दूसरा, भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने त्वरित कार्रवाई की है, परंतु हमे यह भी देखना चाहिए कि सीमा पर तकनीकी सुविधाएँ कितनी अद्यतन हैं।
तीसरा, अफ्रीदी के बयान ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि बुड़क़ी राजनयिक भाषा अक्सर वास्तविक तथ्य को ढँक देती है, जिससे जनता में भ्रम उत्पन्न होता है।
चौथा, FATF की ग्रे‑लिस्ट में डालने की मांग न केवल राजनीतिक लीवर बनती है, बल्कि इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक दण्ड भी मिल सकता है।
पाँचवाँ, इस तरह के हमले के पीछे अक्सर स्थानीय जुड़ाव वाले समूह होते हैं, जिन्हें सुदूर‑संधारण और खुफिया साझाकरण के माध्यम से ख़त्म किया जा सकता है।
छठा, कश्मीर में टूरिज़्म सीज़न के दौरान हुए इस हमले ने स्थानीय लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में असुरक्षा का माहौल बना दिया है, जिससे आर्थिक नुकसान भी बढ़ता है।
सातवाँ, जब हम देखते हैं कि कई देशों ने मिलकर आतंकवाद के खिलाफ सख़्त कदम उठाए हैं, तो हमें भी अपने राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को पुनः मूल्यांकन करना चाहिए।
आठवाँ, अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत भारत को अपना बचाव करने का हक़ है, लेकिन वह भी सटीक प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों के सम्मान के साथ होना चाहिए।
नौवाँ, अफ्रीदी की भाषा में अत्यधिक अतिरंजित बयान अक्सर कूटनीतिक सम्बन्धों को नुकसान पहुँचाते हैं, इसलिए हमें इन पर ठोस तथ्यों के आधार पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
दसवाँ, इस परिपेक्ष्य में ओवैसी ने जो कदम उठाए हैं, वह राष्ट्रीय भावना को जागृत करने के साथ ही राजनीतिक ज्वालामुखी को भी प्रज्वलित करता है।
ग्यारहवाँ, हमें यह समझना चाहिए कि आतंकवाद केवल एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक चुनौती है जिसके लिए बहुपक्षीय सहयोग आवश्यक है।
बारहवाँ, इस तरह के हमले के बाद जनसंख्या में भय और तनाव का माहौल बन जाता है, जिससे सामाजिक तनाव भी बढ़ सकता है।
तेरहवाँ, इसलिए सरकार को तत्काल पीड़ित परिवारों को पर्याप्त सहायता और चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए।
चौदहवाँ, भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिये तकनीकी उपाय जैसे ड्रोन निगरानी, इंटेलिजेंस शेयरिंग और सीमाई बिंदुओं पर मोबाइल कोहोरट्स को बढ़ावा देना आवश्यक है।
पंद्रहवाँ, अंत में, हम सभी को मिलकर इस राष्ट्रीय संकट का सामना करना चाहिए, वार्ता, समझदारी और दृढ़ निश्चय के साथ, ताकि फिर कभी ऐसा खूनभरा अंधेरा न छा सके।

Prakhar Ojha

अफरीदी का जलवा तो वाकई में कच्चा है, लेकिन वह जो हवाबाज़ी कर रहा है, उससे सिर्फ हवा में धुम्मियाँ बनती हैं। उसकी बातें सुनकर तो ऐसा लगता है जैसे वह किसी दर्पण में अपने ही इमेज़ को देख रहा हो। इस तरह की बकवास से असली मुद्दे को धुंधला कर देना इस समय सबसे भयानक है। खुद को रोक, भाई!

anjaly raveendran

ऐसे झूठे बयान देश के गणमान्य लोगों की इज्ज़त को तल़ख़ा देते हैं।

harshit malhotra

देखो भाई, जब हमारे देश के अद्भुत वीर जवानों ने पहलगाम में शहीदों को सलाम किया, तो दुष्टों की इस बकवास को सस्पेंड कर देना चाहिए।
अफ्रीदी की बातें सुनकर तो यह समझ में आता है कि उनको अपनी खुद की दिक्कतों से बेतहाशा डर लग रहा है।
अगर पाकिस्तान को फंक्शनली हटाने की बात है, तो FATF की ग्रे‑लिस्ट में डालना सबसे सटीक कदम है, और सच्चे राष्ट्रीय हित इस दिशा में हैं।
हमें अपनी सीमाओं को मजबूत बनाते रहना चाहिए, क्योंकि कोई भी विदेशी शक्ति हमारी सुरक्षा को तुच्छ नहीं समझेगी।
वर्तमान में हमें देशभक्तियों को जुटाकर ऐसी दुष्टताओं को जबर‑जबर से रोकना होगा।

saurabh waghmare

साथी लोगों, इस मुद्दे को समझने के लिए हमें कई स्तरों पर विचार करना चाहिए। प्रथम, अंतरराष्ट्रीय सहयोग से फंडिंग रोकना अत्यंत आवश्यक है; द्वितीय, स्थानीय समुदाय में सुरक्षा जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए। साथ ही, फाटफट जांच टोली को सशक्त बनाकर इन हमलों की जड़ तक पहुँचना चाहिए। आशा है कि सभी मिलकर इस चुनौती का समाधान करेंगे।

Madhav Kumthekar

मुझे लगताा है कि अगर हम सभी मिलके इंटेलिजेंस शेयर करेंगे तो ऐसे जंगली हमले बहुत कम हो जायेंगे। साथ ही, पीड़ित लोगों को आर्थिक मदद भी तुरंत पहुंचानी चाहिये।