अंबेडकर – भारत के संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के अग्रणी
जब हम अंबेडकर, डॉ. भीमराव रामजी अब्बास आडवाणी, जिन्हें आमतौर पर अंबेडकर कहा जाता है, उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया और दलित अधिकारों के लिए संघर्ष किया, भी जाना जाता है तो यह सिर्फ एक नाम नहीं, एक चुनौतीपूर्ण यात्रा का प्रतीक है। उनके काम को समझने के लिए हमें दो और कड़ी समझनी होगी: भारतीय संविधान, संविधान भारत की मौलिक कानून व्यवस्था है, जिसकी रचना अंबेडकर ने प्रमुख भूमिका निभाई और सामाजिक न्याय, समाज में सभी वर्गों को बराबर अधिकार और अवसर देना, अंबेडकर का मुख्य उद्देश्य। इन तीनों तत्वों के बीच गहरा संबंध है: अंबेडकर ने सामाजिक न्याय को संविधान के मूल सिद्धांतों में संग्रहीत किया।
मुख्य विचार और उनके प्रभाव
अंबेडकर ने हमेशा कहा कि "जाति व्यवस्था भारत का सबसे बड़ा रोग है"। इस बात को उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेदों में प्रतिबिंबित किया, जहाँ साक्षात्कारिक समानता और भेदभाव-विरोधी प्रावधान शामिल हैं। यह संविधान न केवल कानून बनाता है, बल्कि सामाजिक मापदंडों को भी बदलता है। उनके अनुसार, सामाजिक न्याय बिना आर्थिक सशक्तिकरण के अधूरा है, इसलिए उन्होंने शिक्षा को अधिकार माना। आज के कई स्कीम, जैसे छात्रवृत्ति और आरटीआई, उनके इस सिद्धांत पर आधारित हैं।
एक और महत्वपूर्ण पहलु है दलित आंदोलन, समाज के अत्याचारित वर्गों के अधिकारों के लिए चलाया गया संगठित संघर्ष, जिसे अंबेडकर ने रणनीतिक दिशा दी। उन्होंने कंक्रीट एग्जीक्यूटिव पॉलिसियों की मांग की, जिससे दलितों को रोजगार, शिक्षा और राजनैतिक प्रतिनिधित्व मिल सके। उनका दृढ़ विश्वास था कि अगर दलित वर्ग को वोट का अधिकार और आर्थिक अवसर मिलें तो समाज में असमानता घटेगी। यह आंदोलन आज भी कई सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित करता है।
अंबेडकर का जीवन केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया, जिसने उनके सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत को आध्यात्मिक आधार दिया। इस कदम ने लाखों दलितों को बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित किया और सामाजिक तिरस्कार के विरुद्ध एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। बौद्ध धर्म के सिद्धांत—समानता, करुणा और अहिंसा—उन्हें अपने सामाजिक उद्देश्यों को मजबूत बनाने में मददगार साबित हुए। इस बदलने से उनके अनुयायियों में आत्मविश्वास और पहचान का नया स्रोत मिला।
राजनीतिक स्तर पर अंबेडकर ने कई मुख्य कानूनों में योगदान दिया। उन्होंने आरक्षण नीति को संविधान में समाहित किया, जिससे अंडररेप्रेज़ेंटेड कम्युनिटीज़ (URC) को पदों में आरक्षण मिला। यह नीति आज भी शिक्षा और रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसके अलावा, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को भी समान दर्जा दिया, जैसे कि वैवाहिक संपत्ति के अधिकार और समान रोजगार के अवसर। इन सबका लक्ष्य था एक समावेशी भारत बनाना जहाँ हर नागरिक को न्याय मिले।
आज अंबेडकर को कैसे याद किया जाता है? उनकी जयंती को अक्सर विभिन्न शैक्षिक और सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। स्कूलों में उनके जीवन पर चर्चा की जाती है, और कई संस्थान उनके नाम से स्थापित हुए हैं। इसके अलावा, विभिन्न सरकारी योजनाओं में उनके आदर्शों को प्रतिबिंबित किया जाता है, जैसे कि “अंबेडकर राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना”। इन पहलुओं से स्पष्ट होता है कि उनका प्रभाव समय के साथ घटता नहीं बल्कि विस्तार पाता जा रहा है।
अंत में, अंबेडकर की विरासत को समझना सिर्फ इतिहास पढ़ने तक सीमित नहीं है; यह हमें आज के सामाजिक मुद्दों को हल करने में दिशा देता है। चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो, रोजगार में समानता, या जाति-आधारित भेदभाव का निराकरण, उनका दृष्टिकोण हर कदम पर लागू किया जा सकता है। इस पेज पर आप विभिन्न लेखों के माध्यम से उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं—संविधान निर्माण, दलित आंदोलन, बौद्ध धर्म ग्रहण, और आधुनिक नीतियों में उनका योगदान—की गहराई से जानकारी पाएँगे। आगे पढ़ें और देखें कि कैसे अंबेडकर की सोच ने आज के भारत को आकार दिया है।
5 फरवरी को हुए चुनाव में भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीतकर दिल्ली में 27 साल बाद फिर से सत्ता संभाली। अंमद आदमी पार्टी के प्रमुख नेता अर्जुन केजरीवाल समेत कई सांसदों का चुनाव में पराजय हुई। कांग्रेस ने तीन लगातार चुनावों में एक भी सीट नहीं जिती। अगले दिन रेखा गुप्ता को नई दिल्ली की मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।