पॉलिग्राफ टेस्ट क्या है और यह कैसे काम करता है?

क्या पॉलिग्राफ 100% सच बता देता है? सीधे शब्दों में नहीं। पॉलिग्राफ एक उपकरण है जो दिल की धड़कन, रक्तचाप, साँस लेने की गति और त्वचा की नमी जैसे शारीरिक संकेतों को रिकॉर्ड करता है। इन संकेतों में बदलाव को झूठ बोलने से जोड़कर विश्लेषण किया जाता है। लेकिन याद रखें, शारीरिक बदलाव हमेशा झूठ के कारण नहीं होते—तनाव, दवाइयाँ या नींद की कमी भी कारण बन सकती हैं।

पॉलिग्राफ का काम उन सवालों पर केंद्रित है जो सीधे मामले से जुड़े होते हैं। प्रश्नों के उत्तर से मिलने वाले जैविक डेटा को तुलना के जरिए देखा जाता है। विशेषज्ञ पैटर्न पहचानकर 'संदिग्ध' या 'नॉन-संदिग्ध' परिणाम बताते हैं।

पॉलिग्राफ टेस्ट कैसे होता है?

पहले आपको एक छोटी बातचीत से गुजरना होता है—इसे प्री-टेस्ट इंटरव्यू कहते हैं। इसमें टेस्ट करने वाला आपको प्रक्रिया समझाता है और सवाल तय करता है। उसके बाद क्लिप, बेल्ट और सेंसर आपके शरीर पर लगाए जाते हैं जो पसीना, दिल की धड़कन और साँस को मापते हैं।

टेस्ट में सामान्यतः तीन तरह के सवाल होते हैं: मैजर (मुख्य मामले के), कंट्रोल (तुलना के लिए) और नॉन-रिलेटेड (सामान्य)। मशीन इन सब पर रिस्पॉन्स रिकॉर्ड करती है और बाद में ग्राफ पर परिणाम दिखता है।

टेस्ट के दौरान दिमाग शांत रखने की कोशिश करें। झूठ बोलने के प्रयास से टीसी (countermeasures) नामक हालात बन सकते हैं जो परिणाम को प्रभावित कर देते हैं।

तैयारी, सटीकता और क्या समझें?

कुछ आसान बातें ध्यान रखें: अच्छी नींद लें, जांच से पहले कैफीन और नशीले पदार्थ न लें, और कोई दवा चल रही हो तो बताएं। झूट छुपाने की रणनीतियाँ अक्सर पकड़ी जाती हैं या परिणाम को अस्पष्ट बनाती हैं।

सटीकता एक स्थिर आंकड़ा नहीं है। अलग-अलग स्टडीज में 60% से लेकर 90% तक के दावे मिलते हैं—पर ये शर्तों, टेस्टर की काबिलियत और प्रयोग की गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं। इसलिए पॉलिग्राफ को हमेशा अकेला 'साक्ष्य' नहीं मानना चाहिए।

फाल्स पॉज़िटिव और फाल्स नेगेटिव दोनों हो सकते हैं। यानी कोई सच बोलकर भी संदिग्ध आ सकता है या कोई झूठ बोलकर साफ दिख सकता है।

भारत में पॉलिग्राफ की कानूनी स्थिति जटिल है। अधिकतर मामलों में कोर्ट इसे निर्णायक सबूत नहीं मानते। पुलिस और जांच एजेंसियाँ इसे संदिग्धों की पहचान में उपयोग करती हैं, पर अंतिम निर्णय अन्य सबूतों पर आधारित होता है। निजी कंपनियाँ कभी-कभी भर्ती या आंतरिक जांच में पॉलिग्राफ का उपयोग करती हैं, लेकिन ये नैतिक और कानूनी सवाल उठा सकता है।

अगर आप किसी जांच का हिस्सा हैं तो सलाह है: शांत रहें, ईमानदारी से जवाब दें और आवश्यक होने पर वकील से सलाह लें। पॉलिग्राफ एक मददगार उपकरण हो सकता है, पर इसे सच का अंतिम मापदंड समझना गलत होगा। अन्य भरोसेमंद तरीके—डीएनए, सीसीटीवी फुटेज, डिजिटल फॉरेंसिक्स—अक्सर निर्णायक साक्ष्य देते हैं।

अगर आप पॉलिग्राफ के बारे में और जानना चाहते हैं या किसी लेख/न्यूज़ के संदर्भ में सवाल हैं, तो बताइए—मैं मदद कर दूँगा।

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कोलकाता में एक 31 वर्षीय ट्रेनिंग डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में सीबीआई को पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष और चार डॉक्टरों के पॉलिग्राफ टेस्ट करने की मंजूरी मिल गई है। यह घटना 9 अगस्त को मेडिकल कॉलेज के परिसर में हुई थी। सीबीआई ने इस मामले की गहन जांच के लिए यह कदम उठाया है।

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