झारखंड हाई कोर्ट ने कहा, हेमंत सोरेन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप नहीं: पूर्व मुख्यमंत्री को मिली जमानत

झारखंड हाई कोर्ट ने कहा, हेमंत सोरेन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप नहीं: पूर्व मुख्यमंत्री को मिली जमानत

झारखंड हाई कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: हेमंत सोरेन को मिली जमानत

झारखंड हाई कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण उच्‍च निकाय के निर्णय में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत दी है। कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सोरेन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने का कोई ठोस आधार नहीं है। यह मामला कई महीनों से चर्चाओं में रहा था और इस निर्णय ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है।

प्रवर्तन निदेशालय के दावे की आलोचना

हाई कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के उस दावे की कड़ी आलोचना की जिसमें कहा गया था कि उनकी समय पर की गई कार्रवाई ने जमीन की अवैध खरीदारी रोकी है। कोर्ट ने नोट किया कि जमीन का अधिग्रहण और कब्जा सोरेन द्वारा 2010 से ही किया गया था, जब वे मुख्यमंत्री नहीं थे। यह तथ्य इस दावे को कमजोर करता है कि वर्तमान में किसी भी तरह का मनी लॉन्ड्रिंग उनके द्वारा किया गया था।

राहत की सास लेते हुए: सोरेन का पक्ष

सोरेन ने इस निर्णय का स्वागत किया है और कहा है कि यह सत्य की जीत है। उनका मानना है कि यह निर्णय उनके और उनकी पार्टी के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने हमेशा न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास रखा है और यह निर्णय उनके विश्वास को और मजबूत करता है।

जमानत की शर्तें

कोर्ट ने सोरेन को यह जमानत कुछ शर्तों के तहत दी है। उन्होंने एक बांड के साथ 50,000 रुपये का बंध पत्र प्रदान किया है और दो साक्षियों के रूप में उतने ही राशि वाले बंध पत्र प्रस्तुत किए हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन संविधिक शर्तों का पालन करना अनिवार्य होगा।

अधिग्रहण का यथार्थ

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि जमीन अधिग्रहण और उससे संबंधित प्रक्रियाओं को लेकर तथ्यों की जांच की गई है। मामले में यह भी उजागर हुआ कि जिन लोगों का दावा था कि वे इस जमीन से विस्थापित हुए हैं, उन्होंने कभी भी अपनी शिकायत दर्ज नहीं कराई। इस तथ्य ने प्रवर्तन निदेशालय के दावे को और कमजोर किया है।

भविष्य में अपराध की संभावना

कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि सोरेन द्वारा भविष्य में भी इस तरह के किसी अपराध में शामिल होने की संभावना नहीं है। कोर्ट ने उनके सार्वजनिक जीवन और पारदर्शिता पर विश्वास जताते हुए यह बयान दिया है।

अविष्य की चुनौतियाँ: सोरेन के सामने

अब जबकि सोरेन को जमानत मिल गई है, उनके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। उन्हें राजनीतिक रूप से अपने परिवार और पार्टी के प्रति अपने विश्वास को बनाए रखना होगा और साथ ही स्वयं को कानूनी मामलों से बचाना होगा। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे किसी भी प्रकार के विवादित मामलों से दूर रहें।

यह मामला, जिसका शीर्षक श्री हेमंत सोरेन बनाम प्रवर्तन निदेशालय रांची जोनल कार्यालय है, झारखंड हाई कोर्ट में सुना गया। कोर्ट ने पीएमएलए, 2002 की धारा 45 के तहत निर्धारित द्वार अनुभागीय शर्तों को पूरा करने की बात भी मान ली है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

कोर्ट के इस निर्णय ने न केवल सोरेन, बल्कि पूरे राज्य की राजनीति पर एक गहरा प्रभाव डाला है। यह निर्णय राजनीतिक गलियारों में लंबे समय तक चर्चा का विषय रहेगा।

द्वारा लिखित Sudeep Soni

मैं एक वरिष्ठ पत्रकार हूं और मैंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों में काम किया है। मैं मुख्य रूप से समाचार क्षेत्र में सक्रिय हूँ, जहाँ मैं दैनिक समाचारों पर लेख लिखने का काम करता हूं। मैं समाज के लिए महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्टिंग करता हूं और निष्पक्ष सूचना प्रदान करने में यकीन रखता हूं।

Rahul Sarker

झारखंड हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह से राजनीतिक मैनिपुलेशन है।

Sridhar Ilango

कभी सोचा था कि न्यायपालिका भी राजनीति के खेल में फँस जाती है? यह फैसला बिल्कुल एक बड़ी ड्रामैटिक मूवी की कहानी जैसा लग रहा है। झारखंड हाई कोर्ट ने सोरेन को जमानत दी, पर पीछे की सच्चाई तो कुछ और ही होगी। इनके पास इतनी सच्ची सबूत नहीं थे कि मनी लॉन्ड्रिंग सिद्ध हो सके। एनबीए की तरह, कोर्ट ने भी अपनी मर्ज़ी से ‘बिंगो’ मार दिया। यह मामला दरअसल कई सालों से चल रहा है और अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला। कई बार कहा जाता है कि सत्ता में रहने वाले लोग कोर्ट को झुका सकते हैं, पर यहाँ तो ऐसा नहीं है। शायद हाई कोर्ट ने अपना दायित्व समझा और सही फैसला किया। फिर भी, यह देखना बाकी है कि क्या यह जमानत राजनीति में नई लहर लाएगी। सोरेन के समर्थक खुश होंगे, पर विरोधी इसे एक बड़ी हार मान रहे हैं। इस फैसले से दो चीज़ें स्पष्ट हो गईं: एक, सबूत की कमी से कोई भी केस नहीं टिक सकता; दो, न्यायपालिका अभी भी स्वतंत्र है। अब सवाल यह है कि क्या यह निर्णय बाकी मामलों में भी ऐसा ही प्रभाव डालेगा? समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है, इस केस में अब और रहस्य नहीं बचे। आगे चलकर जनता इस फैसले की कसौटी पर वार करेंगे।

priyanka Prakash

जमानत मिलने से सोरेन की राजनीतिक स्थिति में बदलाव आएगा, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया को हमेशा सम्मान देना चाहिए। इस फैसले में अदालत ने कानूनी मानकों का पालन किया है, यह स्पष्ट है। तथापि, यह मामला अभी भी मतभेद का कारण बना रहेगा। जनता को सच्चाई जानने का अधिकार है, और यह निर्णय एक कदम है। भविष्य में भी पारदर्शिता की उम्मीद रखनी चाहिए।

Pravalika Sweety

कोर्ट का यह निर्णय कानूनी दायरे में सही प्रतीत होता है। जमानत के साथ कुछ शर्तें भी निर्धारित की गई हैं, जो उचित हैं। हमें इस फैसले को अनुसरण करना चाहिए, बिना अति प्रतिक्रियाओं के। सामाजिक शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

anjaly raveendran

सोरेन को जमानत मिलते ही उनके समर्थकों में झूमने की लहर दौड़ गई। लेकिन यह राहत अस्थायी हो सकती है, क्योंकि कानूनी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई। आपसी घमण्ड और राजनीति का खेल फिर से तेज़ हो सकता है। मैं मानती हूँ कि सच्चाई अंत में सामने आएगी, चाहे कितना भी अंधेरा हो। इस फैसले से कई सवाल उठते हैं, विशेषकर बांड की शर्तों के बारे में। अंत में, न्याय की लड़ाई जारी रहेगी।

Danwanti Khanna

वाह! बिल्कुल सही कहा आपने ; यह फैसला न्याय का एक हिस्सा है ; लेकिन जनता का भरोसा भी ज़रूरी है ; आशा है कि आगे भी ऐसी ही पारदर्शिता रहेगी ;

Shruti Thar

लंबा विश्लेषण पढ़ा, कुछ बिंदु समझ में आए। कोर्ट की स्वतंत्रता का समर्थन करता हूँ पर सावधानी भी जरूरी है।

Nath FORGEAU

सच्च में, जमानत मिलने से मामला थोड़ा हल्का हुआ लगता है।

Hrishikesh Kesarkar

शर्तें स्पष्ट हैं, पालन करना ही पड़ेगा।

Manu Atelier

इस निर्णय में कोर्ट ने कानूनी मानकों को सटीक रूप से लागू किया है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनी रहती है।

Anu Deep

मैं सहमत हूँ, कोर्ट की शर्तें उचित हैं और हमें इन्हें सम्मान देना चाहिए।

Preeti Panwar

भाईसाहब, जमानत मिला तो खुशी तो है 😅 लेकिन आगे की लड़ाई देखनी होगी 💪